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मेरा बुद्धा लाॅफिंग नहीं

Seema Meshram

Friday, April 26, 2019, 10:47 AM
laughing buddha

मेरा बुद्धा लाॅफिंग नहीं
स्वाक्खातो भगवता धम्मो संदिट्ठिको, अकालिको।
एहिपस्सिको, ओपनायिको, पच्चतं वेदितब्बो विज्जूहिति।।
अर्थात, बुद्ध कहते है (भिक्षुओ! यह धर्म अच्छी तरह समझा कर कहा गया है, यह सांदृष्टिक है, यह अकालिक है, इसके बारे में कहा जा सकता है कि आओ और स्वयं देख लो, यह ऊपर उठाने वाला है, और हर विज्ञ (पुरूष) इसका स्वयं साक्षात कर सकता है।
प्रत्येक धार्मिक सम्प्रदाय की शिक्षायें अपने अपने गुणो व भौतिक विशेषताओ को लेकर चलती है। हमें यह सिद्ध नहीं करना है कि हमारी धार्मिक मान्यताओं को अमुक सम्प्रदाय विकृत रूप में पेश कर रहा है या सही कर रहा है या गलत, बल्कि अगर अमुक व्यक्ति का तर्क या मान्यता किसी भी सम्प्रदाय की शिक्षाओं  के विरूद्ध हो अतार्किक हो, तो धम्म के किसी भी सम्प्रदाय की शिक्षाओ के विरूद्ध हो अतार्किक हो, तो धम्म के शुद्ध स्वरूप को बनाये रखने ऐसी विसंगत मान्यताओं को दूर करना प्रत्येक सधम्म व्यक्ति का कर्तव्य हो जाता है। अगर वह हमारे  धार्मिक सांदृष्टिक धर्म के पालन के मार्ग में बाधा बन जाये।
आज भारत में तथागत बुद्ध को अन्य सम्प्रदायो ने खुले दिल से स्वीकार नहीं किया है। इसका कारण मुझे बताने की आवश्यकता नहीं कि ये शूद्रो के देवता कहलाते है। बुद्ध धार्मिक मान्यताओ के अनुसार वे ऐसे देवता है जो सिर्फ शूद्रो द्वारा पूजे जायेगें, जो भी द्विज इन्हे पूजेगा उन्हे नर्क की प्राप्ति होगी। ये संस्कारवान, उच्च वर्ग कहलाने वाले लोग भला क्यों नर्क में जाना चाहेगा। लेकिन आज आधुनिक समाज चाहे वह ब्राह्मण हो या एससी हो या एसटी हो सभी लाॅफिंग बुद्ध को घर में रखने लगे है, क्योंकि लाॅंफिंग बुद्ध को दलित शूद्र समाज ने नहीं वरन् उच्च संस्कृति ने जन्म दिया है। मैं स्पष्ट कर दूँ, मैने ज्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत बुद्ध के बारे में पढ़ा है। वे कहीं से भी लाॅफिंग बुद्ध नहीं है, न ही ऐसे मोटे थुलथुल काया वाले है, न ही वे ऊपर हाथ उठाकर हँसते है, न ही उनके दाँत चमकते है। उनका व्यक्तित्व ही अनोखा था। मुझे तो लाॅफिंग बुद्ध और हमारे तथागत बुद्ध में कहीं से भी साम्य नजर नहीं आता। यह तो ऐसे हो जायेगा जैसे कृष्ण को कहें कि वे बाँसुरी बजाना छोड़कर तबला वादक थे। भला तथागत बुद्ध की शिक्षा व विचारो को, धम्म को पढ़कर कौन ज्ञानवान व्यक्ति लाॅफिंग बुद्ध पर विश्वास करेगा। बुद्ध को वही जानेगा जो उनके धम्म को जानेगा, उनकी शिक्षाओं का आचरण नियम पूर्वक करेगा। वे तो एक शुद्ध वैज्ञानिक, धार्मिक महान संत थे। उनके धम्म को आज भी कोई चुनौती नहीं दे सकता। जापान, चीन, थाइलैंड, बर्मा, श्रीलंका जैसे देशो ने इसे पूरी आस्था से अपनाया परंतु हमारे भारत में हमेशा उन्हें उपेक्षा मिली। जब भी इनका प्रचार हुआ विकृत रूप से जैसे, एक बार परमाणु परीक्षण के समय कोड़ दिया गया ‘‘बुद्ध मुस्कराये’’ दूसरी बार बुद्ध पुनः मुस्कराये। जिस बुद्ध ने हमेशा शांति, प्रेम, मानवता के उपदेश दिया हो उसके जन्म दिन पर परमाणु परीक्षण करना अशोभनीय व नारकीय नहीं है।
जो भी हो बुद्ध कभी ऐसी गलत मान्यताओ के दायरो से ऊपर उठकर है। वे कभी नहीं छिप सकते। उनका व्यक्तित्व असाधारण रूप से सुन्दर था। जितने भी वर्णन मिलते है, उनसे यही ज्ञात होता है कि तथागत एक सुन्दर शरीर वाले थे न कि लाॅफिंग बुद्ध के समान मोटे व नाटे थुलथुल बदन वाले।
वह एक स्वर्ण-पर्वत के शिखर के समान थे। उनका कद ऊँचा था, शरीर सुडौल था। उनकी लम्बी लम्बी बाहे, उनकी शेर की सी चाल, उनकी वृषभ की सी आँखे उनका सौन्दर्य, उनकी स्वर्ण समान दीप्ती, उनकी चैड़ी छाती, सभी को अपनी ओर आकर्षित करती थी। उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि न केवल वे लोगो के स्वाभाविक नेता थे, बल्कि उनके दिलो के देवता थे।
जब भी वे स्त्री-पुरूषो से बातचीत या प्रवचन करते उनका गंभीर शान्त स्वरूप लोगो के मन में एक आदर की भावना का संचार करता था, उनकी मधुर वाणी लोगो को आश्चर्य में और आनंदइ से विभोर कर देती।
इस परम्परागत मत का समर्थन उन लोगो की साक्षी से भी होता है, जिन्होंने भगवान बुद्ध को उनके जीवन काल में देखा, जिन्होने उनसे भेंट की है। एक ऐसा प्रत्यक्ष साक्षी ‘‘साल’’ नामक का ब्राह्मण था। भगवान बुद्ध को सामने देखकर उनकी इस प्रकार स्तुति की व जाँच की। उसने कुशल समाचार पूछने के अनन्तर बुद्ध के शरीर पर बत्तीस महापुरूष लक्षणों के होने न होने की जाँच की व कहाँ भगवान आपका शरीर अंग-संपूर्ण है। श्रेष्ठ है, समृद्ध है, आकर्षक है। स्वर्ण-वर्ण है। दांतो से स्वर्ण रश्मिया निकलती है, अंग-अंग सशक्त है। पूरे बत्तीस महापुरूष के लक्षणो से युक्त है। ‘‘स्पष्ट दृष्टि, सुन्दर ऊँचे और सीधे है आप। अपने अनुयायियों में सूर्य-समान प्रज्वलित है।
स्थाविर आनंद जो तथागत का प्रिय शिष्य था, उनके अनुसार तथागत शरीर इतना अधिक स्वच्छ और ज्योतित था कि यदि उनके बदन पर किसी स्वर्णिम वस्त्र का जोड़ा रखा जाता तो उसकी ज्योति शरीर की ज्योति के सम्मुख कम पड़ जाती। तब इससे क्या आश्यर्च है, यदि तथागत के विरोधी तथागत को एक जादूगर समझते थे।
आप ही बताइये हमारे बुद्ध में और लाॅफिंग बुद्ध में कहीं मेल खाता है। भारतीय मान्यता है या सिर्फ कुछ अन्य सम्प्रदाय कि ‘‘बुद्ध विष्ण के अवतार है’’ इस कथन से भी सीधे दिल पर चोट पहुंचती है। बुद्ध ने कभी अवतारवाद को नहीं माना, उन्होंने माँ की कोख से जन्म लिया, जिन्होंने अपनी माता को भी, पत्नी को भी, पुत्र को भी दीक्षा देकर बुद्ध पथ पर अग्रसर कर दिया। उन्हीं के बारे में यह अवतारवाद (नासमझी की भी हद होती है) केवल परम्परा व पुराने संस्कार को गहरी आस्था को लेकर चलने वाले ही यह बात मान सकते है, जैसे कि कई अन्य अवैज्ञानिक बातो को मानते है। जैसे तांत्रिक लोग मानते है। बच्चो की बलि या जानवरो की बलि देने से देवी प्रसन्न होती है या खास सिद्धि प्राप्त होती है, यह तो अक्षर भैंस बराबर होता है। बुद्ध ने कभी नहीं कहाँ कि मेरी पूजा करो, न उनकी शिक्षाओ में चमत्कार वाद है न प्रार्थना है, न मनोकामना की सिद्धि के लिये भेंट या चढ़ावे की बाते है। उनका धम्म नैतिकता का धम्म है। मानव व्यवहार का धम्म है। धार्मिक आचरण का  धम्म है। उनका धम्म यह धम्म नहीं सिखाता कि बुद्ध हँसते है या रोते है।
सीमा मेश्राम - भोपाल

 





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