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गोटमार मेला

Pratima Ramesh Meshram

Wednesday, May 1, 2019, 07:53 AM
Gotmar Fair

गोटमार मेला
कहते है कि इस प्रथा की शुरूआत पांढूर्णा व सावरगांव के लड़के व लड़की से सम्बन्धित है। दोनो एक दूसरे से प्रेम करते थे, दोनों का प्यार इतना परवान चढ़ा की वे अपने घर से भागने के लिये निकले तो लोगां की नजर प्रेमीयों पर पड़ी और लड़की पक्षवालों ने लड़के के ऊपर अपना आक्रोश जताने के लिये पत्थर मारे। भींड बढ़ने लगी पत्थरों की बौछार दोनों तरफ से होने लगी। जनता के आक्रोश व गुस्से के कारण इन प्रेमियों की मौत हो गई। तभी से हर वर्ष पोले के दूसरे दिन यहां पर गोटमार (पत्थरमार) मेले का आयोजन होता है। पांढुर्णा व सावरगांव के बीच में से जाम नदि गुजरती हैं, जाम नदि के बीच में एक पलाश का वृक्ष (झण्डा) गाड़ दिया जाता है, जो पक्षकार उस झण्डे को तोड़ता है या उखाड़ता है वह विजयी होता है।
यहां पर माँ चण्डिका का प्राचीनतम मन्दिर है। झण्डा तोड़ने के बाद पहले मंदिर में पहुँचाया जाता है। गोटमार के कारण अभी तक पांढुर्णा के कई लोगों ने अपने परिवार के लोगों को खो दिया है। प्रत्येक वर्ष मरने वालो का आकड़ा बढ़ता ही जाता है। घायल भी अपाहिज हो जाते है। फिर भी घायल व्यक्ति को यहां पहले उपचार के बजाय मंदिर में लाया जाता है और माँ चण्डिका के मंदिर में जलाई जाने वाली अगरबत्ती, या वस्तुओं की राख जिसे भभुति कहते है वह लगाई जाती है। फिर डाॅक्टर के पास पट्टी बंधवाई जाती है। यह उनकी आस्था व दृढ़ इच्छाशक्ति को दर्शाता है।
किन्तु गोटमार ने एक नया रूप ले लिया है, शासन प्रशासन के नाक के नीचे लोग सरेआम एक दूसरे पर कातिलाना हमला करते हैं, कईयों को लहुलुहान करते है। इस मैले में लोग अपनी पुरानी रंजीश को निकालते है और गोटमार में इस रंजीश को अंजाम देते है।
श्रीमती प्रतिमा मेश्राम, पाण्ढूणा

 





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