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पागल

Narendra Shende
narendra.895@rediffmail.com
Sunday, August 8, 2021, 12:19 PM
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*पागल*

कल भरे बाजार में किसी ने किसी को जोर से पागल कह कर पुकारा। कोई बोला- ओ पागल!

बाजार में कोई आ रहा था, कोई बाजार से जा रहा था। कोई पैदल था, कोई स्कूटर, साइकिल पर, पर एक बात सबकी एक जैसी थी, सबने पलट कर देखा। एक साथ देखा। सब को यही लगा कि उसे ही पुकारा गया है।

 दुकानदार भी ग्राहक से ध्यान हटा कर बारह झाँकने लगे तो ग्राहक भी सिर घुमा कर देखने लगे कि कहीं कोई उन्हें तो नहीं बुला रहा है?

सब्जी खरीदती कुक्कू की माँ ने तो कुक्कू को यहाँ तक कह दिया कि देख तेरा बाप आया है क्या? जरूर वही होगा। पूरा पागल है। कहीं भी चैन नहीं लेने देता। और इतनी भी अकल नहीं, भरे बाजार में भी मुझे पागल कह कर बुला रहा है।

देखो यहाँ सब पागल हैं। और पागलों की एक विशेषता होती है, वे अपने को छोड़कर शेष सभी को पागल समझते हैं। इसीलिए तो हर वह पागल जो दिन रात दूसरों को पागल बताता है, अपने को पागल कहने वाले को मारने दौड़ता है।

 एक बार एक संत को उनका एक शिष्य जो पागलों का डाक्टर था, पागलखाना दिखाने ले गया।

 वहाँ एक कोने में कईं पागल बैठे रो रहे थे। उन सब के बीच एक पागल चुपचाप बैठा था। डाक्टर ने उससे पूछा ये क्यों रो रहे हैं? वह बोला- कोई मर गया है।

 डाक्टर ने पूछा- फिर तुम क्यों नहीं रो रहे हो? वह पागल बोला- पागल! मैं ही तो मरा हूँ।





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