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धर्म का महत्व

Kisan Bothey

Friday, June 21, 2019, 06:32 PM
Dharm ka mahatv

धर्म का महत्व
धर्म मात्र बौद्धिक उपलब्धि ही नहीं है, वह मनुष्य की स्वाभाविक चित्त है, परंतु वह शरीर और कर्म के आवरण से ढकी हुई है।
इसलिए वह अज्ञात है। आवरण से चैतन्य ढका हुआ है, पर उसका अस्तित्व विस्मृत नहीं है। सूर्य बादल से ढका हुआ है, पर अस्त नहीं है। मनुष्य प्रत्येक प्रवृत्ति के उपरांत विराम चाहता है। शरीर, वाणी और मन की प्रवृत्ति मनुष्य को बाह्य जगत में ले जाती है। वाणी मौन होना चाहती है और शरीर शिथिल। शरीर की शिथिलता, वाणी का मौन और मन का अंतर में विलीन होना ध्यान है और यही मन का स्वभाविक रूप है, यही धर्म है। धर्म का अर्थ है मन से मन को देखना, मन से मन को जानना और आत्मा से मन में स्थित होना। जो मन का स्वभाव नहीं है वह धर्म नहीं है। धार्मिकता अंतःकरण की पवित्रता है। वह धर्म की रूचि होने मात्र से प्राप्त नहीं होती, उसकी साधना से प्राप्त होती है, साधना करने वाले धार्मिक बहुत कम है। अधिकतर धार्मिक सिद्धि प्राप्त करने वाले लोग है। आज का धर्म भोग से इतना आच्छन्न हैं कि त्याग और भोग के मध्य कोई रेखा नहीं जान पड़तीं। धर्म का क्रांतिकारी रूप तब होता है जब वह जनमानस को भोग-त्याग की ओर अग्रसर करें।
जहां त्याग और भोग की रेखाएं आसपास पाई जाती हैं, धर्म अर्थ से संयुक्त होता है, वहां धर्म अधर्म से ज्यादा भयंकर बन जाता है। यदि हम चाहते हैं कि धर्म पुनः प्रतिष्ठित हो तो हम उसके विशुद्ध रूप का अध्ययन करें। हम उस युग में धर्म की पुनः प्रतिष्ठा की बात कर रहे हैं जिस युग का नाम उपलब्धि की दृष्टि से वैज्ञानिक, शक्ति की दृष्टि से आणविक और शिक्षा की दृष्टि से बौद्धिक है। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बंधन से मुक्त किंतु समाज, राजनीति और आर्थिक क्षेत्र को प्रभावित करने वाला धर्म ही वास्तव में प्रभावशाली हो सकता है। धर्म से आत्मोदय होता है, यह उसका वैयक्तिक स्वरूप है। उसका प्रभावशाली होना सामाजिक स्वरूप है। यही दोनों रूप आज अपेक्षित हैं। यही शाश्वत व परिवर्तन की मर्यादा को समझने से ही प्राप्त हो सकते हैं।
- किशन बोथे

 





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