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बुद्ध वंश

Dinesh Bhaleray

Wednesday, February 2, 2022, 12:56 PM
Buddha Vansh

।।बुद्ध वंश।।

-राजेश चन्द्रा-

बुद्धत्व प्राप्ति के बाद एक बार भगवान बुद्ध राजगृह में अपने विशाल संघ के साथ विहार कर रहे थे कि महाराज शुद्धोदन ने उन्हें कपिलवस्तु आमंत्रित करने के लिए एक दूतमण्डल भेजा। राजगृह पहुँच कर वो दूत भगवान के धम्म प्रभाव में प्रव्रजित होकर संघ में सम्मिलित हो गये। बहुत दिनों तक कोई समाचार नहीं आया, तो महाराज ने दूसरा दूतमण्डल भेजा। वो भी प्रव्रजित होकर भगवान के पावन संघ में शामिल हो गये। इस प्रकार कई दूत मण्डलों को निमंत्रण के लिए भेजने के विफल प्रयासों के बाद महाराज शुद्धोदन ने अपने सबसे विश्वसनीय आमात्य एवं सिद्धार्थ के बालसखा कालु उदायी को भेजा। कालु उदायी ने कहा- महाराज, एक शर्त पर जाऊंगा, कि मुझे भी प्रव्रज्या की अनुमति मिले...

पुत्र वियोग में व्याकुल महाराज ने कहा- प्रिय कालु उदायी, तुम्हारी सारी शर्तें मुझे स्वीकार हैं, बस मेरे बेटे को एक बार कपिलवस्तु ले आओ...

कालु उदायी भी गये। पूर्व संकल्प के अनुसार वह भी प्रव्रज्या लेकर भगवान के संघ का अंग बन गये। फिर एक दिन अवसर अनुकूल देख कर वह भगवान के सम्मुख मनोरम मौसम का आख्यान करने लगे, यथा- भगवान, पेड़ों पर नयी पत्तियाँ आ गयी हैं, फूल खिल उठे हैं, अब न अधिक गर्मी है न अधिक ठण्ड है, वायु मलय हो गयी है, पक्षी कलरव कर रहे हैं, रास्ते भी साफ हो गये है, न अधिक सूखा है और न ही कीचड़...

यह सुन कर भगवान ने मुस्करा कर पूछा- कालु उदायी, किधर यात्रा करने की भूमिका बन रही है? भगवान को मनोनुकूल देख कर कालु उदायी ने भावुक कंठ से कहा- भगवान, आपके वृद्ध पिता आपको याद कर रहे हैं... इतना संकेत पर्याप्त था। भगवान बुद्ध ने भिक्खु संघ को कपिलवस्तु की ओर प्रस्थान करने का निर्देश दिया ...

भगवान पधार रहे हैं, यह खबर पूरे कपिलवस्तु में फैल गयी और हर कोई अपने-अपने तरीके से उनके स्वागत की तैयारी करने लगा, चारों ओर उत्सव नजर आने लगा... अन्ततः फाल्गुन की पूर्णिमा को भगवान कपिलवस्तु पधारे, न्यग्रोधाराम विहार में संघ के साथ प्रवास किया...

महाराज शुद्धोदन को प्रत्याशा थी कि भगवान सीधे राजमहल आएंगे, लेकिन अगली सुबह कपिलवस्तु की विथिकाओं में अपने संघ के साथ भगवान को पिण्डपात अर्थात भिक्षाटन करते देख कर वह बड़े व्याकुल हो गये। वह महल की अटारी से उतर कर भागते हुए भगवान के सम्मुख आ गये- बेटा सिद्धार्थ, यह तुम क्या कर रहे हो?

महाराज शुद्धोदन अभी भी भगवान बुद्ध को 'बेटा सिद्धार्थ' ही समझ रहे थे। उन्होंने कहा- बेटा, हमारे वंश में आज तक किसी ने भिक्षा नहीं मांगी, यह हमारी कुल परम्परा नहीं है...

‘लेकिन राजन!' भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया, 'हमारे वंश में भिक्षा ही वृत्ति है, यह हमारी कुल परम्परा है...'

हैरान महाराज ने कहा- क्या तुम्हारा और मेरा वंश अलग-अलग है, क्या हमारी-तुम्हारी कुल परम्परा भिन्न है?

भगवान ने कहा- हाँ राजन, आपका राजवंश है, हमारा बुद्धवंश है, हमारी बुद्धों की परम्परा है, हमसे पूर्व के बुद्धों ने भी भिक्षावृत्ति पर ही जीवनयापन किया है, यही बुद्धों की परम्परा है। तब महाराज शुद्धोदन हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हैं- अपने संघ के साथ कृपया कल के भोजनदान का पुण्यलाभ का अवसर मुझे दीजिए...

भगवान मौन रह कर महाराज के भोजनदान का निमंत्रण स्वीकार करते हैं। यह पहला अवसर नहीं है कि जब भगवान बुद्ध पूर्व के बुद्धों का स्मरण करते हैं, उनका सन्दर्भ देते हैं, बुद्धों की परम्परा के उदाहरण देते हैं, बल्कि बौद्ध साहित्य में, त्रिपिटक में, अनेक अवसरों पर भगवान बुद्ध पूर्व के बुद्धों का न केवल स्मरण करते हैं, वरन उनकी वन्दना भी करते हैं, उनके नाम-धाम-देश-काल इत्यादि का भी आख्यान करते हैं।

बुद्ध वन्दना की एक गाथा है:

ये च बुद्धा अतीता च ये च बुद्धा अनागता।

पच्चुपन्ना च ये बुद्धा अहं वन्दामि सब्बदा।।

- 'ये च बुद्धा अतीता च' अर्थात अतीत में जितने बुद्ध हो गये हैं, 'ये च बुद्धा अनागता' अर्थात जितने अनागत अर्थात भविष्य में बुद्ध होंगे, 'पच्चुपन्ना च ये बुद्धा' अर्थात वर्तमान में जो बुद्ध हैं। वर्तमान से तात्पर्य वर्तमान कल्प से भी है, जैसे वर्तमान भद्रकल्प है, जिसमें गौतम बुद्ध हैं, हम सब लोग अभी इसी कल्प में विद्यमान हैं। 'अहं वन्दामि सब्बदा' अर्थात हम उन सबकी वन्दना करते हैं।

बौद्ध परम्परा में बुद्ध की नहीं, बल्कि बुद्धों की पूजा, उनकी वन्दना, उनका स्मरण होता है, बुद्ध जो अतीत में हो गये, जो वर्तमान में हैं और जो भविष्य में होंगे, उन सब को नमन...

सुत्त पिटक के खुद्दक निकाय में एक सम्पूर्ण ग्रंथ है- 'बुद्ध वंश' - जिसमें पूर्व के समस्त बुद्धों का आख्यान है, स्वयं भगवान बुद्ध के श्रीमुख से। भगवान बुद्ध महाराज शुद्धोदन के राजवंश की तुलना में अपने जिस बुद्ध वंश का सन्दर्भ देते हैं, इस ग्रंथ 'बुद्ध वंश' में भगवान बुद्ध अपने सम्पूर्ण वंश का सविस्तार वर्णन करते हैं, उनके नाम-धाम-देश-काल का स्मरण करते हैं, जैसे कोई अपने पुरखों का स्मरण करता है। वे पूर्व के बुद्धों की परम्परा स्मरण भी करते हैं और अनुसरण भी करते हैं। समस्त बुद्धों की कुछ समान चर्या होती है, जैसे सभी बुद्ध भिक्षा चर्या पर आश्रित रहते हैं, हर कल्प में जो बुद्ध होते हैं वे अभिनिष्क्रमण करते हैं, कोई हाथी पर सवार होकर, कोई घोड़े पर, कोई पालकी, कोई रथ पर, जैसे दीपंकर बुद्ध, सुमन बुद्ध, सुमेध बुद्ध, पुष्प बुद्ध, सिखी बुद्ध एवं कोणागमन बुद्ध ने हाथी पर आरूढ़ होकर अभिनिष्क्रमण किया। कौण्डिन्य बुद्ध, रेवत बुद्ध, पियदस्सी बुद्ध, विपस्सी बुद्ध एवं ककुछन्द बुद्ध ने रथ पर आरूढ़ होकर महाभिनिष्क्रमण किया; मंगल बुद्ध, सुजात बुद्ध, अत्थदस्सी बुद्ध, तिस्स बुद्ध एवं वर्तमान गौतम बुद्ध ने घोड़े पर सवार होकर अभिनिष्क्रमण- गृहत्याग किया तथा अनोमदस्सी बुद्ध, सिद्धार्थ बुद्ध, वेस्सभू बुद्ध ने शिविका अर्थात पालकी में बैठ कर अभिनिष्क्रमण किया और नारद बुद्ध ने पैदल चल कर ही गृहत्याग कर दिया।

इसी प्रकार हर कल्प के बद्ध किसी एक वृक्ष का आश्रय लेकर साधना करते हैं, उसी के नीचे बुद्धत्व लाभ करते हैं, उस कल्प में वह आश्रयी वृक्ष ही बोधिवृक्ष कहलाता है। जैसे अनोमदस्सी बुद्ध को अर्जुन के पेड़ के नीचे बुद्धत्व लाभ हुआ, तो उनके कल्प में अर्जुन का पेड़ बोधिवृक्ष के रूप में पूजित हुआ, सुमेध बुद्ध ने कदम्ब के पेड़ का आश्रय लेकर साधना की, उसी की छाँव में बुद्धत्व लाभ किया, इसलिए उनके कल्प में कदम्ब का पेड़ बोधिवृक्ष कहलाया, विपस्सी बुद्ध ने पाटल वृक्ष अर्थात गुलाब के पेड़ के नीचे साधना की, उनके काल में गुलाब का पेड़ बोधिवृक्ष हुआ, कोणागमन बुद्ध को उदुम्बर अर्थात गूलर के पेड़ के नीचे सम्बोधि लाभ हुआ, उनके काल में गूलर का पेड़ बोधिवृक्ष के रूप पूजनीय हुआ, वर्तमान बुद्ध का वृक्षाश्रय पीपल का पेड़ है, इसलिए अब के कल्प में, जिसमें हम लोग है, पीपल का पेड़ बोधिवृक्ष है, काश्यप बुद्ध के कल्प में वट वृक्ष बोधिवृक्ष था, इत्यादि।

हर कल्प के बुद्ध धर्मचक्क पवत्तन करते हैं। भिन्नताएं एवं समानताएं होते हुए भी बुद्धों का प्रताप समान होता है, उनमें न्यूनता-अधिकता नहीं मानी जाती।

पूर्वजों का स्मरण करने पर उनसे प्रेरणा मिलती है, उत्साह मिलता है, आत्मविश्वास दृढ़ होता है, इसलिए हर कल्प के बुद्ध न केवल पूर्व के बुद्धों का स्मरण करते हैं वरन भविष्य के भावी बुद्ध की घोषणा भी करते हैं। दीपंकर बुद्ध सहित पूर्व के चौबीस बुद्धों ने वर्तमान गौतम बुद्ध के भद्रकल्प, वर्तमान युग में, होने की घोषणा की थी और भगवान गौतम बुद्ध ने भी इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए आगामी मैत्रेय बुद्ध की घोषणा की है:

“अहमेतरहि सम्बुद्धो, मेत्तेय्यो चा पि हेस्सति”

- अर्थात अभी मैं सम्बुद्ध हूँ और मैत्रेय बुद्ध आगे होंगे।

बौद्ध ग्रंथों में वर्तमान गौतम बुद्ध सहित अट्ठाईस बुद्धों का उल्लेख है:

1.तण्हंकर बुद्ध,

2. मेधंकर बुद्ध,

3. सरनंकर बुद्ध,

4. दीपंकर बुद्ध,

5. कौण्डिन्य बुद्ध,

6. मंगल बुद्ध,

7. सुमन बुद्ध,

8. रेवत बुद्ध,

9. सोभित बुद्ध,

10. अनोमदस्सी बुद्ध,

11. पद्म बुद्ध,

12. नारद बुद्ध,

13. पद्मोत्तर बुद्ध,

14. सुमेध बुद्ध,

15. सुजात बुद्ध,

16. पियदस्सी बुद्ध,

17. अत्थदस्सी बुद्ध,

18. धम्मदस्सी बुद्ध,

19. सिद्धार्थ बुद्ध,

20. तिस्स बुद्ध,

21. पुष्प बुद्ध,

22. विपस्सी बुद्ध,

23. सिखी बुद्ध,

24. वेस्सभू बुद्ध,

25. ककुछन्द बुद्ध,

26. कोणागमन बुद्ध,

27. कस्सप बुद्ध,

28. गौतम बुद्ध ।

भगवान गौतम बुद्ध के जन्म के समय असित नाम के एक ऋषि हिमालय से उतर कर आए थे, राजा शुद्धोदन के राजमहल, नवजात शिशु का दर्शन करने। जब उन्होंने बालक सिद्धार्थ को गोदी में लिया, तो उसके शरीर के बत्तीस लक्षणों को देख कर वे प्रसन्न होकर मुस्कराने लगे कि यह बालक पूर्ण आयु पाने पर बुद्ध लाभ करेगा, बुद्ध होगा। लेकिन अगले ही पल उनकी आँखों में आंसू छलक आए। वह रोने लगे। हैरान राजा ने पूछा- ऋषिवर, पहले आप मुस्कराए और अब रो रहे हैं? कोई बात अनिष्टकारक है क्या?

ऋषि असित ने कहा कि इस बालक के शरीर के लक्षण बता रहे हैं कि बड़ा होकर यह सम्यक सम्बुद्ध होगा। इस बात से प्रसन्न होकर मैं मुस्कराया, लेकिन रो रहा हूँ यह सोचकर कि जब यह सम्यक सम्बुद्ध होगा, तब तक मैं जीवित नहीं रहूँगा, उनके चरणों में बैठ कर मैं धम्म देशना नहीं सुन सकूँगा। यह सोचकर मन दुःखी हुआ। इसीलिए रो रहा हूँ।

बुद्धों की शरण में बैठ कर धम्म देशना सुनने, उनकी पूजा-वन्दना करने, उनका सेवा-सत्कार करने, उनको भोजनदान-चीवरदान देने की अभीप्सा बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों में भी होती है। वे भी प्रत्यक्ष बुद्ध को शरणगमन करने की कामना करते हैं, तो फिर आमजन का तो कहना ही क्या!

इसीलिए बुद्धों की परम्परा रही है कि वे पूर्व के बुद्धों का स्मरण-गुणगान-कीर्तिनाद करते हैं और भावी बुद्ध की घोषणा भी करते हैं, यह आश्वासन भी देते हैं कि जो रोग-शोक-आयुक्षय के कारण अभी बुद्ध दर्शन से वंचित रह गये हैं वे भावी बुद्ध के समय उनके दर्शन का पुण्य लाभ पा सकते हैं, उनसे प्रत्यक्ष धम्मदेशना सुन सकते हैं, उनको भोजन-चीवर-औषधि दान आदि करके पुण्य लाभ कर सकते हैं, जो अभी चूक गये हैं वे भी अपनी साधना में लगे रहें, पारमिताओं को पुष्ट करते हुए, इतना पुण्य लाभ करें कि भावी बुद्ध के समय सान्निध्य लाभ मिले। बुद्धों के वचनों में आशावाद है। आशावाद से ही जीवन चल रहा है, दुनिया चल रही है। बुद्धों का आश्वासन झूठा नहीं होता- 'धुवं बुद्धो भविस्सति' अर्थात यह ध्रुव सत्य है कि भविष्य में भी बुद्ध होंगे।

भगवान गौतम बुद्ध के भी ध्रुव वचन है 'भविष्य में मैत्रेय बुद्ध होंगे।' दीघनिकाय के चकवत्ति सुत्त में मैत्रेय बुद्ध का जन्म स्थान तक का भी उल्लेख है। इस सुत्त का संगायन भगवान ने मगध देश में बिहार करते समय भिक्खुओं के समक्ष किया था। इस सुत्त में उल्लेख है कि वर्तमान का वाराणसी नगर ही कालान्तर में केतुमति नगर के नाम से जाना जाएगा। इसी नगर में- मनुस्सेसु मेत्तेयो नाम भगवा- मनुष्यों में मैत्रेय नाम के भगवान बुद्ध होंगे, वे सम्यक सम्बुद्ध होंगे-

"मनुस्सेसु मेत्तेयो नाम भगवा लोके उप्पज्जिस्सति अरहं सम्मासम्बुद्धो विज्जाचरणसम्पन्नो सुगतो लोकविदु अनुत्तरो पुरिसदम्मसारथि सत्था देव मनुस्सानं बुद्धो भगवा, सेय्यथापाहमेतरहि लोके उप्पन्नो अरहं सम्मासम्बुद्धो विज्जाचरणसम्पन्नो सुगतो लोकविदु अनुत्तरो पुरिसदम्मसारथि सत्था देवमनुस्सानं बुद्धो भगवा। सो इमं लोकं सदेवकं समारकं सब्रह्मकं सस्समणब्राह्मणिं पजं सदेवमनुस्सं सयं अभिञ्ञा सच्छिकत्वा पवेदेस्सति, सेय्यथापाहमेतरहि इमं लोकं सदेवकं समारकं सब्रह्मकं सस्समणब्राह्मणिं पजं सदेवमनुस्सं सयं अभिञ्ञा सच्छिकत्वा पवेदेमि। सो धम्मं देसेस्सति आदिकल्याणं मञ्झेकल्याणं परियोसानकल्याणं सात्थं सब्यञ्जनं, केवलपरिपुण्णं परिसुद्धं ब्रह्मचरियं पकासेति, सेय्यथापाहमेतरहि धम्मं देसेमि आदिकल्याणं मज्झेकल्याणं परियोसानकल्याणं सात्थं सब्यञ्जनं, केवलपरिपुण्णं ब्रह्मचरियं पकासेति; सेय्यथापाहमेतरहि धम्मं देसेमि आदिकल्याणं मज्झेकल्याणं परियोसानकल्याणं सात्थं सब्यञ्जनं केवलपरिपुण्णं परिसुद्धं ब्रह्मचरियं पकासेति। सो अनेकसहस्सं भिक्खुसंघ परिहरिस्सति, सेय्यथापाहमेतरहि अनेकसतं भिक्खुसंघ परिहरामि।”

- लोक में मनुष्यों में मैत्रेय नाम के भगवान होंगे, वे अरहत, सम्यक सम्बुद्ध होंगे, वे विद्याचरण सम्पन्न, सुगत, लोकविदु, अनुत्तर होंगे, बिगड़े हुए घोड़ों को साधने वाले कुशल सारथी की तरह वे देवों और मनुष्यों को साधने वाले भगवान बुद्ध होंगे, जैसे अभी मैं लोक में उत्पन्न हुआ हूँ, अरहत, सम्यक सम्बुद्ध हूँ, विद्याचरण में सम्पन्न, सुगत्, लोकविदु, अनुत्तर, देवों-मनुष्यों को साधने वाला भगवान हूँ, ऐसे ही वे भी इस लोक में मार, ब्रह्मा, श्रमण, ब्राह्मण, समस्त मनुष्यों को अभिज्ञान कराएंगे, देशना देंगे, जैसे अभी मैं इस लोक में मार, ब्रह्मा, श्रमण, ब्राह्मण, समस्त मनुष्यों को अभिज्ञान कराता हूँ, उपदेश देता हूँ, ऐसे ही वे भी जो धम्म देशना देंगे, वह भी आदि में कल्याणकारी होगी, मध्य में कल्याणकारी होगी, अपने समस्त व्यंजनों सहित अन्त तक कल्याणकारी होगी, जिससे परिपूर्ण कैवल्य सम्बोधि एवं परिशुद्ध ब्रह्मचर्य प्रकाशित होगा, जैसे अभी मैं धम्म उपदेशता हूँ, जो आदि कल्याणकारी है, मध्य कल्याणकारी है, समस्त व्यंजनों सहित अन्त तक कल्याणकारी है, कैवल्य ज्ञान, सम्बोधि और परिशुद्ध ब्रह्मचर्य को प्रकाशित करने वाला है। वह अनेक सहस्र भिक्खु संघ के साथ विहार करेंगे, जैसे अभी मैं सैकड़ों भिक्खुओं के संघ के साथ विहार करता हूँ।

इससे अधिक प्रामाणिक आश्वासन क्या हो सकता है! दुनिया के करोड़ों-करोड़ बौद्ध उपासक-उपासिकाएं, भिक्खु-भिक्खुनियाँ आज भी सिर्फ इस अभीप्सा में साधनारत हैं, पारमिताओं का अभ्यास पुष्ट कर रहे हैं, लोक उपकारी पुण्य कार्य कर रहे हैं कि वे भी इतना पुण्य अर्जित कर सकें कि जब कभी लोक में मैत्रेय बुद्ध का जन्म हो, तो वह उनके युग में जन्म लेकर, उनके सम्मुख धम्म देशना सुन सकें, उनके दर्शन कर सकें, उनकी पूजा-वन्दना कर सकें, उनको यथावश्यक, यथासामर्थ्य दान देने का सुअवसर पा सके, अन्ततः सम्बोधि लाभ कर सकें।

कहते हैं कि वर्तमान बुद्ध कभी भी गुरु रूप में नहीं रहना चाहते थे। उन्होंने प्राणिमात्र के प्रति मैत्री भाव से धम्म देशना देने का निर्णय लिया था, लेकिन प्राणिमात्र ने उन्हें मित्र नहीं गुरु मान लिया। इसलिए आगामी बुद्ध मित्र रूप में होंगे, इसलिए उनका नाम मैत्रेय बुद्ध होगा। वह मित्र रूप में धम्म देशना देंगे। उनका संघ मित्र संघ होगा, न केवल भिक्खु-भिक्खुनियों का वरन उपासक-उपासिकाओं का भी। दुनिया के करोड़ों-करोड़ श्रद्धालु उपसाक-उपासिकाएं, भिक्खु-भिक्खुनियाँ मैत्रेय बुद्ध की प्रतीक्षा में, उनके दर्शन की अभीप्सा में साधनारत हैं, पारमिताओं की साधना कर रहे हैं। मैत्री भी दस परिमिताओं में एक पारमिता है।

आगामी बुद्ध के आगमन की सबसे बड़ी पूर्व तैयारी होगी कि इस धरती को हिंसामुक्त, आतंकमुक्त, अनाचारमुक्त, द्वेष और भेदभाव मुक्त कर मैत्रीपूर्ण बनाना, क्योंकि बुद्ध के वचन है- मैत्री सम्पूर्ण धम्म है!





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