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जीवन क्या है

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Thursday, December 9, 2021, 12:27 PM
life

जीवन क्या है ?*

*What is Life ?*

*जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसके पास सांसे तो होती हैं पर कोई नाम नहीं होता और जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसके पास नाम तो होता है पर सांसे नहीं होती। इसी सांसों और नाम के बीच की यात्रा को कहते हैं - जीवन ।*

जीवन में विश्वास महत्वपूर्ण है। इन १० बातों में विश्वास रखते हैं तो जीवन बहेतर होता है।

जीवन का मतलब:

{1} हर कोई खुशहाल जीवन जीना चाहेगा, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इसका मतलब क्या होगा या इसे कैसे पूरा किया जाएगा।

नकारात्मकता से छुटकारा:

{२} हमारी भावनाएँ और मनोवृत्तियाँ प्रभावित करती हैं कि हम कैसा महसूस करते हैं। प्रशिक्षण के साथ, हम खुद को नकारात्मक से छुटकारा दिला सकते हैं और उन लोगों को विकसित कर सकते हैं जो स्वस्थ और अधिक सकारात्मक हैं। ऐसा करने से हमारा जीवन खुशहाल और अधिक संपन्न होगा।

आत्म नियंत्रण:

{३} क्रोध, भय, लालच और मोह जैसी भावनाओं को दूर करने से हमें मानसिक शांति और आत्म-नियंत्रण खोना पड़ता है। प्रशिक्षण के साथ, हम अपने आप को उनके नियंत्रण में होने से मुक्त कर सकते हैं।

शान्ति :

{४} क्रोध या लालच से मजबूर होकर कार्य करना हमारे लिए समस्याएँ पैदा करता है और दुःख का कारण बनता है। प्रशिक्षण के साथ, हम शांत होना सीख सकते हैं, स्पष्ट रूप से सोच सकते हैं और बुद्धिमानी से काम कर सकते हैं।

सकारात्मक भावनाएं :

{५} सकारात्मक भावनाएं जैसे प्यार, करुणा, धैर्य और समझ हमें शांत, खुले और स्पष्ट रहने में मदद करती हैं, और हमें अधिक खुशी लाती हैं। प्रशिक्षण के साथ, हम उन्हें विकसित करना सीख सकते हैं।

नि:स्वार्थ व्यवहार :

{६} आत्मचिंतन, स्वार्थी व्यवहार और विचार हमें दूसरों से दूर करते हैं और हमें दुखी करते हैं। प्रशिक्षण के साथ, हम उन्हें दूर कर सकते हैं।

मददगार होना :

{७} यह महसूस करते हुए कि हम सभी आपस में जुड़े हुए हैं और यह कि हमारा अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर है, हमारे दिल और दिमाग को खोलता है, हमें दूसरों के लिए चिंता विकसित करने में मदद करता है, और हमें अधिक खुशी देता है।

भ्रम को दूर करना :

{८} जो हम अपने आप में और दूसरों में महसूस करते हैं उनमें से अधिकांश भ्रम के आधार पर कल्पना के अनुमान हैं। जब हम मानते हैं कि हमारे अनुमान वास्तविकता के अनुरूप हैं, तो हम अपने और दूसरों के लिए समस्याएं पैदा करते हैं।

वास्तविकता :

{९} सही समझ के साथ, हम खुद को भ्रम से मुक्त कर सकते हैं और वास्तविकता देख सकते हैं। यह हमें जीवन में जो कुछ भी होता है, उससे शांति और समझदारी से निपटने में सक्षम बनाता है।

बेहतर इंसान :

{१०} बेहतर इंसान बनने के लिए खुद पर काम करना जीवन भर की चुनौती है, लेकिन सबसे सार्थक चीज हम अपने जीवन के साथ कर सकते हैं।

मनुष्य जीवन अनमोल है। बेहतर इंसान बनने के लिए उच्च आदर्श होना जरूरी है। मनुष्य जीवन में प्रथम आदर्श है- सदाचार। दूसरा आदर्श है-सम्यक दृष्टि और चित्त की एकाग्रता। तीसरा आदर्श है - यथाभूत ज्ञान ।

संक्षिप्त में - शील, समाधि और प्रज्ञा का मार्ग बेहतर इंसान बनने के लिए आदर्श है।

*न किसी के अभाव में जियो,*

*न किसी के प्रभाव में जियो।*

*यह जिंदगी है आपकी, बेहतर जीवन जियो।*

 

तथागत गौतम बुद्ध ने कहा है कि इस संसार में ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है जो दु:ख से कभी बचा हो

इन सात प्रकार के दु:खों से मनुष्य को गुजरना पड़ता है,

1. इस संसार में जन्म लेना दु:ख है,
2.  बीमार होना दु:ख है,
3. बूढ़ा होना  दु:ख है,
4. मृत्यु को प्राप्त होना दु:ख है,
5. प्रिय व्यक्ति से अलग होना  दु:ख है,
6. अप्रिय व्यक्ति से मिलना  दु:ख है,
7. इच्छाओं की पूर्ति ना होना भी दु:ख है।

     तथागत के बताए  ये 7 दु:ख हमारे जीवन किसी न किसी प्रकार से, चाहे बचपन में, चाहे जवानी में या फिर बुढ़ापे में ही क्यों ना हो दु:ख तो हमेशा रहेगा इस वैज्ञानिकता से परिपूर्ण बात को तथागत ने आज से 2600 साल पूर्व कहा था।
मृत्यु से वही डरता है जो हमेशा मृत्यु की बात करता है और जो व्यक्ति जीवन की सत्यता को भली-भांति जान जाता है वह ना तो बीमारी से डरता है, ना बुढ़ापे से डरता है ना मृत्यु से डरता है और ना ही अपनों को खोने से डरता है.... क्योंकि सत्य तो सत्य है, भूतकाल में भी, वर्तमान काल में भी और भविष्य काल में भी। निरंतर उद्वभव और विनाश (परिवर्तन) ही प्रकृती का नियम है। जो इस सत्य को स्वीकार कर लेता है वह अपने दुखों से दूर हो जाता है

इसीलिए अपने जीवन को परिवर्तन के नियम के अनुसार जियें  क्योंकि जो व्यक्ति परिवर्तन के नियम को जानता है वहां व्यक्ति कभी भी मृत्यु से नही डरता।

 

श्रावस्ती में भगवान बुद्ध ने कहा-

"मोहं भिक्खवे,एकधम्मं पजहथ ।
अहं वो पाटिभोगो अनागामितया ।। "    
                          -(इतिवृत्तक)
अर्थात,

" भिक्खुओं,  केवल एक मोह का त्याग कर दो, तो मैं तुम्हारे अनागामी होने की जामिन होता हूँ ।"

राग, द्वेष, मोह के बंधनों से मुक्ति  ही निर्वाण पथ हैं । जो व्यक्ति इन तीन दोषों का प्रहाण करता हैं, वह व्यक्ति निर्वाण सुख भोगता हैं । राग, द्वेष और मोह का प्रहाण शील, समाधि और प्रज्ञा से हो जाता हैं ।

प्रहाण तीन प्रकार के होते है-
१. तदांग प्रहाण
२. विक्खम्भन प्रहाण
३. समुच्छेद प्रहाण

प्रदीप के प्रकाश से जैसे अंधकार थोड़ा-थोडा करके दूर हो जाता है, ऐसे ही प्राणी हिंसा से विरत होने आदि कुशल अंगों से, प्राणी हिंसा करना आदि अकुशल अंगों का प्रहाण हो जाता है। ऐसे ही प्रहाण को तदांग प्रहाण कहते है।

जैसे घड़े से लगते पानी के ऊपर का सेवाल हट जाता है, ऐसे ही उपचार और अर्पणा समाधि से पाँच नीवरण दब जाते हैं,दूर हो जाते हैं,उस अवस्था को विक्खम्भन (विष्कम्भन) प्रहाण कहते है।

चारों आर्य मार्गों की भावना से क्लेशों का एकदम दूर हो जाना, फिर कभी न उत्पन्न होना- समुच्छेद प्रहाण कहा जाता है।

"खीणं पुराणं, नवं नत्थि सम्भवं"
पुराने कर्म क्षीण हो गये,
नये कर्म उत्पन्न नहीं होते,
तब चित्त पुनर्भाव से विरक्त होता हैं,
क्षीणबीज होते जाते हैं और तृष्णा ही समाप्त हो जाती हैं ।

मनुष्य का जीवन श्रेष्ठ, दुर्लभ, कठिन माना जाता हैं, क्योंकि मनुष्य जीवन में ही राग-द्वेष और मोह को संपूर्ण समाप्त कर सकते हैं ।
 
निर्वाण सुख और भवसागर पार करना ही मनुष्य जीवन का धम्मपथ हैं ।

श्रावस्ती के धनी सेठ "बहुभण्डक " भिक्खु बन गया, फिर भी ठाठ-बाट पूर्ण आराम और शानो-शौकत के साथ रहता था। उसका रहन सहन भौतिक सुख युक्त था। भिक्खु के विनय से बिलकुल विपरीत था। इसलिए तथागत ने उसे कहा -  " बहुभण्डिके ! बुद्ध भिक्खुओं को त्याग की जिन्दगी जीने का उपदेश देते हैं, तुम अपने साथ इतनी वस्तुएं क्यों लाये हो ?"  इस बात पर बहुभण्डक आग बबूला हो गया, गुस्से में तमतमा कर कहने लगा, " आप चाहते हैं कि मैं आपकी इच्छानुसार जाऊं।"  ऐसा कहते हुए उसने पहने हुए सभी चीवर फेंक दिए।

इस घटना के समय तथागत ने शील का महत्व समझाते हुए कहा -

"न नग्गचरिया न जटा न पंका नानासका थण्डिलसायिका वा।
रजोचजल्लं उक्कुटिकप्पधानं सोधेन्ति मच्चं अवितिण्णकंखं ।। "
अर्थात :
" जिस पुरूष के संदेह समाप्त नहीं हुए हैं, उसकी शुद्धि न नंगे रहने से, न जटा रखने से, न कीचड  (लपेटने)  से, न उपवास करने से, न कडी भूमि पर सोने से, न धूल लपेटने से और न उकडूं बैठने से ही होती है। "

असली शुद्धि तो शील पालन से होती है।

 विशुद्धिमग्ग में कहा है -

" न गंगा यमुना चापि सरभू वा सरस्वती।
निन्नागा वा अचिरवती मही चापि महानदी ।। "

" प्राणियों के जिस मल को शील रुपी जल धो डालता है, गंगा, यमुना, सरयू, सरस्वती, अचिरवती, मही एवं महानदी नहीं धो पाती।"

चीवर पहन लेने से कोई भिक्खु नहीं हो सकता है, न वह धम्मधर हो जाता है।  शील का आचरण किये बिना न वह भिक्खु है, न धम्मचारी।

शील के आचरण से मनुष्य का मन इतना योग्य हो जाता है कि उस पर संसार की बुराइयों का असर नहीं होता।

"गुणानं मूल भूतस्स सीलं।"

 शील ही गुणों का मूल हैं।





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