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प्रो दिलीप मंडल ने लिखी CJI को चिट्ठी

Ajay Narnavre

Sunday, August 8, 2021, 11:47 AM
CJI

प्रो दिलीप मंडल ने लिखी CJI को चिट्ठी

इसी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक दिलीप मंडल ने भारत के मुख्य न्यायधीश N V रमन्ना को पत्र लिखकर सलोनी कुमारी बनाम डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसेज़ और अन्य केस में जल्दी सुनवाई करने की माँग की है। आइये आपको बताते हैं कि दिलीप मंडल ने अपनी चिट्ठी में क्या लिखा है?

‘प्रिय मुख्य न्यायधीश 

भारत के एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर पर मैं रिट पेटिशन नंबर 596 (2015) सलोनी कुमारी बनाम डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसेज़ और अन्य केस में जल्दी सुनवाई के बारे में लिख रहा हूँ, ये याचिका 2015 से बिना किसी अंतरिम राहत के पेंडिंग पड़ी है। मैं साफ़ कर दूँ कि मैं ना तो इस केस में पार्टी हूँ और ना ही मुझे इस केस के फ़ैसले से कोई व्यक्तिगत लाभ होगा। 

मामला मेडिकल की पढ़ाई में ऑल इंडिया कोटा के तहत सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ों के आरक्षण का है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में कई बार सुनवाई की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। 

भारत सरकार ने 13 जुलाई 2021 को जारी नोटिफिकेशन में कहा है कि सरकार NEET 2021 में ऑल इंडिया कोटा के तहत तब तक OBC आरक्षण नहीं देगी जब तक कोर्ट इस याचिका का फैसला ना कर दे।

इस केस की मेरिट और अन्य पहलुओं को छुए बिना मैं आपकी जानकारी में ला दूँ कि ऑल इंडिया कोटा में पहले से ही राज्यों और केंद्रीय संस्थानों में SC-ST और विकलांग कोटा लागू है। SC-ST को 31 जनवरी 2007 को अभय नाथ और अन्य बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी केस में आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के आधार पर आरक्षण मिल पाया। 

आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक सुरक्षाएँ मिली हैं लेकिन फिर भी हर साल इन वर्गों के छात्रों की हज़ारों मेडिकल सीटों का नुक़सान हो रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को अभी भी सलोनी कुमारी केस में फ़ैसला सुनाना है। ये बात मैं उक्त याचिका में पूर्वनिर्धारित परिणाम की किसी उम्मीद के बिना कह रहा हूं। 

न्यायालय के तथ्यात्मक अवरोधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, मैंने और मेरे जैसे बहुत से लोगों ने ये पाया है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े वर्गों के आरक्षण से जुड़े मसलों को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ग़ैर ज़रूरी रूप से लटकाया जाता है जिससे इन वर्गों के ना सिर्फ़ न्याय तक समान पहुँच के संवैधानिक अधिकार समेत कई तरह की संवैधानिक सुरक्षाओं का उल्लंघन होता है। इसलिए मैं आपसे अपील करता हूँ कि ऐसे तमाम केसों को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में प्राथमिकता दी जाए ताकि उन्हें न्याय मिलने में देरी ना हो।





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