खेत की मेड़ों पर पेड़ लगाना क्यों ज़रूरी है Siddharth Bagde tpsg2011@gmail.com Friday, June 20, 2025, 04:20 PM खेत की मेड़ों पर पेड़ लगाना क्यों ज़रूरी है? लेखक - सिद्धार्थ बागड़े जब हम गर्मी के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों की ओर नज़र डालते हैं, तो अक्सर बंजर ज़मीन, तपती धूप और खेतों की सूखी मेड़ें दिखाई देती हैं। इन मेड़ों पर प्रायः किसान लोग कटिली झाड़ियाँ, बबूल या अन्य कांटेदार पौधे लगा देते हैं, ताकि उनकी ज़मीन की सीमा सुरक्षित रहे और मवेशी फसलों में प्रवेश न करें। लेकिन यही झाड़ियाँ गर्मियों में सूखकर उजाड़ रूप ले लेती हैं और सम्पूर्ण खेत का दृश्य जीवनविहीन प्रतीत होता है। जबकि यदि इन मेड़ों पर छायादार, घने और बहुपयोगी वृक्ष लगाए जाएँ, तो न केवल खेत की शोभा बढ़ेगी, बल्कि अनेक व्यावहारिक और पर्यावरणीय लाभ भी मिलेंगे। हरियाली और जैव विविधता की वापसी खेतों की मेड़ों पर यदि हम नीम, मीठा नीम, आम, जामुन, जामफल, सीताफल, चीकू, नींबू, सागवान, करंज, पॉम ट्री, पीपल, शमी, आंवला जैसे बहुपयोगी और छायादार वृक्ष लगाएं, तो इससे खेतों का वातावरण ही बदल सकता है। ये पेड़ न केवल हरियाली बढ़ाते हैं, बल्कि छांव, फल, लकड़ी और औषधीय लाभ भी प्रदान करते हैं। साथ ही, खेत की मेड़ों पर ऐसे वृक्ष लगाने से पक्षियों, मधुमक्खियों और अन्य जीवों के लिए प्राकृतिक आश्रय तैयार होता है, जो पर्यावरणीय संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है। गर्मी में मिट्टी और फसल की सुरक्षा गर्मी के मौसम में जब तेज धूप खेत की मिट्टी को झुलसा देती है, तब छायादार वृक्ष खेतों के लिए रक्षा कवच का कार्य करते हैं। बिना पेड़ों की मेड़ वाले खेतों में सूरज की किरणें सीधे मिट्टी पर पड़ती हैं, जिससे नमी तेजी से उड़ जाती है और मिट्टी तप जाती है। इससे फसलें मुरझाने लगती हैं। जिन खेतों की मेड़ों पर नीम, आम, जामुन जैसे वृक्ष लगे होते हैं, वहाँ न केवल मिट्टी ठंडी बनी रहती है, बल्कि वाष्पीकरण की गति धीमी होने से नमी भी सुरक्षित रहती है। साथ ही, इन वृक्षों की गहरी जड़ें मिट्टी को पकड़कर भूमि कटाव रोकती हैं और वर्षा जल को संचित कर भूजल स्तर को बढ़ावा देती हैं। पुरानी परंपरा और आज की स्थिति पहले के किसान केवल लाभ नहीं, बल्कि प्रकृति, जीव-जंतु और समाज के प्रति भी संवेदनशील होते थे। वे खेतों की मेड़ों पर बड़े-बड़े फलदार और छायादार वृक्ष लगाते थे, जिन पर मोर, बुलबुल, कोयल, तोते और अन्य पक्षी बसेरा करते थे। आजकल अधिकांश किसान सिर्फ उत्पादन और लाभ पर केंद्रित हो गए हैं। परिणामस्वरूप पेड़ काटे जा रहे हैं और मेड़ों पर कांटेदार झाड़ियाँ लगाई जा रही हैं। इससे न केवल हरियाली घट रही है, बल्कि पक्षियों और अन्य जीवों का बसेरा भी छिनता जा रहा है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है। सीमा विवाद की समस्या का समाधान खेतों की मेड़ खाली रहने पर किसान अक्सर अनजाने या जानबूझकर मेड़ पार कर लेते हैं, जिससे ज़मीन की सीमा को लेकर विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यदि मेड़ों पर नीम, करंज, पीपल जैसे वृक्ष लगाए जाएँ तो वे स्थायी और स्पष्ट सीमा रेखा का कार्य करते हैं। इससे न केवल ज़मीन की पहचान बनी रहती है, बल्कि आपसी झगड़े भी टाले जा सकते हैं। इस प्रकार पेड़ केवल पर्यावरण का नहीं, संबंधों का भी रक्षक बनते हैं। कटिली झाड़ियों की परंपरा और उसका स्थान हालांकि कटिली झाड़ियों का उपयोग खेत की रक्षा हेतु वर्षों से होता रहा है और उनके कुछ लाभ भी हैं, जैसे: • मवेशियों से फसल की रक्षा • ज़मीन की सीमाओं की स्पष्टता • कम मेहनत और शीघ्र वृद्धि परंतु ये झाड़ियाँ गर्मियों में सूख जाती हैं, हरियाली नहीं देतीं और न ही जैव विविधता को बढ़ावा देती हैं। मेड़ों पर पेड़ लगाने के लाभ 1. हरियाली और पर्यावरण संरक्षण: नीम, पीपल, आम, जामुन जैसे वृक्ष खेत को हरा-भरा रखते हैं। 2. छांव और तापमान नियंत्रण: किसान और पशु को राहत मिलती है; मिट्टी की नमी बनी रहती है। 3. मृदा संरक्षण: वृक्षों की जड़ें भूमि कटाव रोकती हैं। 4. जैव विविधता का विकास: पक्षी, गिलहरी, मधुमक्खी, तितली जैसे जीवों को आश्रय मिलता है। 5. आय के अतिरिक्त स्रोत: फल, लकड़ी और पत्तियाँ उपयोगी व आर्थिक संसाधन बनते हैं। 6. सामाजिक और सांस्कृतिक लाभ: वृक्ष ग्रामीण संस्कृति का हिस्सा रहे हैं और सामाजिक जीवन को समृद्ध करते हैं। क्या किया जा सकता है? • खेतों की मेड़ों पर वृक्षारोपण की योजना बनाई जाए • ग्राम पंचायतें, कृषि विभाग और पर्यावरण संगठन मिलकर किसानों को प्रशिक्षित करें • "एक खेत – दस पेड़" जैसे अभियानों की शुरुआत हो • किसानों को वृक्षों के लाभ और देखभाल की जानकारी दी जाए • पशुओं से सुरक्षित वृक्षों का चयन किया जाए खेत की मेड़ों पर पेड़ लगाना केवल एक पर्यावरणीय उपाय नहीं है, बल्कि यह खेती की दीर्घकालिक सुरक्षा, सामाजिक सौहार्द, और पारिस्थितिक संतुलन का मार्ग है। यदि हर किसान इस दिशा में एक छोटा कदम उठाए, तो न केवल उसके खेत की उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि गाँव और प्रकृति दोनों को जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी। अब समय है कि हम फिर से हरियाली की ओर लौटें — मेड़ें हरियाली से भरी होंगी, तो खेतों में खुशहाली भी निश्चित होगी। यह सच है कि जैसे ही खेतों की मेड़ों पर आम, जामुन, सीताफल जैसे फलदार वृक्ष लगते हैं, तो बंदरों, लंगूरों और अन्य वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ जाती है, जो कभी-कभी फसल का भारी नुकसान कर देते हैं। लेकिन इसका समाधान पेड़ों को न लगाना नहीं, बल्कि संतुलित और रणनीतिक तरीके से उनकी व्यवस्था करना है। बंदरों से बचाव के उपाय: खेतों की मेड़ों पर पेड़ लगाते समय ध्यान देने योग्य बातें 1. फलदार और छायादार पेड़ों का संतुलन बनाएं • केवल फलदार वृक्षों (जैसे आम, जामुन, सीताफल) को ही न लगाएं। • उनके बीच-बीच में छायादार परंतु फलरहित वृक्ष लगाएं — जैसे: o नीम o करंज o पीपल o अर्जुन o शमी इन वृक्षों में बंदरों की रुचि कम होती है। 2. बंदरों के आवास क्षेत्रों से दूरी रखें • यदि खेत जंगल या पहाड़ी क्षेत्र के पास है जहाँ बंदरों की संख्या बहुत अधिक है, तो वहाँ फलदार वृक्ष कम संख्या में लगाएं, और उन्हें खेत की अंदरूनी मेड़ों की बजाय बाहरी सीमा पर लगाएं। 3. बंदरों के लिए वैकल्पिक भोजन क्षेत्र बनाएं • यह बात नई है पर व्यवहारिक रूप से उपयोगी मानी गई है। कुछ किसान खाली ज़मीन या बंजर क्षेत्र में छायादार और कुछ जंगली फलदार पेड़ (जैसे कुसुम, बहेड़ा, तेंदू, बेर) लगाकर बंदरों को वहीं आकर्षित करते हैं, ताकि वे खेतों में न घुसें। 4. फसल के चारों ओर बाँस की बाड़ या जाल • खेतों के चारों ओर बांस या मजबूत तार की बाड़ बनाई जा सकती है। • इलेक्ट्रिक फेंसिंग का भी प्रयोग (कम वोल्टेज का) अस्थायी रूप से किया जा सकता है, पर यह अनुज्ञापत्र और जिम्मेदारी से ही होना चाहिए। 5. प्राकृतिक डर पैदा करने वाली वस्तुएं • खेत के किनारे कृत्रिम लंगूर की मूर्तियाँ, चलने वाले डरावने पुतले, चमकीली पन्नी या कैसट टेप के टुकड़े, बिल्ली या शिकारी जानवर की आवाज़ चलाने वाले स्पीकर आदि लगाने से बंदर कुछ समय तक दूर रहते हैं। • इनका स्थान समय-समय पर बदलते रहना जरूरी होता है, वरना बंदर उनके आदी हो जाते हैं। 6. ग्राम स्तर पर सामूहिक योजना • अगर एक किसान अकेले प्रयास करेगा तो बंदर उसके खेत से निकलकर दूसरे खेत में घुसेंगे। • इसलिए जरूरी है कि पूरा गाँव मिलकर सामूहिक वृक्षारोपण और बचाव योजना बनाए, जिसमें कुछ जगहों पर विशेष "वन्य जीव टाल" क्षेत्र भी छोड़े जाएं। 7. पशु कल्याण एवं वन विभाग से सहयोग • जहां बंदरों की संख्या बहुत ज्यादा है, वहाँ वन विभाग से संपर्क करके बंदरों को पकड़वाकर अन्य सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कराने की योजना ली जा सकती है (यह एक संवेदनशील और कानूनी प्रक्रिया होती है) Tags : peepal karanja neem situation unknowingly boundaries knowingly empty boundaries