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सितम्बर विचार 2021

TPSG

Monday, September 20, 2021, 06:23 PM
Vichar

चिनी यात्री इत्सिंग बताते हैं कि, भारत में हर युवा लगातार पांच साल विनयपिटक का अध्ययन करता है, तभी वह बौद्ध धर्म का अच्छा अनुयायी बनते हैं| अभी हमारे लोगों को विनयपिटक का एक भी नियम पता नहीं है लेकिन खुद को बौद्ध कहते हैं| - प्रताप चाटसे

इंडिया में स्कूल कम मंदिर ज्यादा पाये जाते है इसलिये यहां वैज्ञानिक कम और बाबा ज्यादा पाये जाते है - मनीष रावत

पहले इंसान जात देखता है, फिर गोत्र देखता है, सैलरी देखता है, फिर कुंडली देखता है और आखिर में कहता है जोड़ियां तो ऊपर वाला बनाता है - विजय राजन

इतनी भयंकर फीस देने के बावजूद अगर बच्चों को अलग से ट्यूशन लगाना पड़े तो,,, प्राइवेट स्कूलों का नाम बदलकर लूटपाट केंद्र कर दो - नरेन्द्र शेन्डे

बुद्धजया (बुद्धविजय) से बुद्धगया नाम पडा़ है| बुद्धगया (Buddha-Gaya) का वास्तविक नाम "बुद्धजया" (Buddha-Jaya) था क्योंकि इसी स्थान पर तथागत बुद्ध ने मारा पर विजय (जय/Jaya) प्राप्त कर दी थी| बुद्ध की मारविजय बौद्ध साहित्य में अत्यंत प्रसिद्ध है| बुद्ध की मारविजय से प्रेरित होकर ही सम्राट अशोक ने अपना जागतिक धम्मविजय अभियान शुरू कर दिया था| 'बुद्ध की मारविजय' को 'अच्छाई की बुराई पर विजय' भी कहा जाता है| -- डा. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क

स्वस्तिक यह चिन्ह मूलत: बौद्ध धम्म का है और उसे ब्राम्हणो ने चुराया है | सारनाथ के प्राचीन स्तुप पर भी यह चिन्ह है | पाकिस्तान में तथागत बुद्ध के पैरो के निशान है और साथ ही स्वस्तिक का भी चिन्ह है | ब्राम्हणो ने बौद्ध धम्म से क्या क्या चुराया है? इसका प्रमाण गीता जैसा ग्रंथ है | डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कहते थे की, भारत का इतिहास यह और कुछ नहीं बल्कि बौद्ध धम्म बनाम ब्राम्हणी धर्म के संघर्ष का इतिहास है | ब्राम्हणो ने प्रतिक्रांति करने के बाद बौद्ध भिक्खुवों का भगवा रंग चुराया | बौध्द विहारों को मंदिर का रुप दिया | बौध्द प्रतिक / त्योहारों को अपना प्रतिक / त्योहार बनाया | बुध्दा को विष्णु का अवतार घोषित किया | अर्थात प्रतिक्रांती के बाद ब्राह्मणोंने सांस्कृतिक लढाई पर ज्यादा जोर दिया था | ब्राह्मणोंने बौध्द विचारों मे कैसी मिलावट की है? ईस पर मै जल्दी ही एक किताब लिखणेवाला हुँ. - मा. प्रा. विलास खरात. (राष्ट्रिय प्रभारी - भारतीय विद्यार्थी मोर्चा)

भारत की संपुर्ण परंपरा बौद्ध परंपरा थी और आज भी है| लेकिन बुद्ध का नाम लेने से लोग इसलिए कतराते है क्योंकि बुद्ध के प्रति भयंकर घृणा अभियान गुप्त काल के बाद चलाया गया था|  बुद्ध को देखने से आप नर्क में जाएंगे क्योंकि बुद्ध नर्क में ले जाने वाला "असुर" है, ऐसा घृणा अभियान बुद्ध के खिलाफ चलाया गया (भविष्य पुराण, 1.3.24)| इसलिए, बुद्ध की मुर्ति को विकृत कर या उसपर कपड़ा तथा रंग ढंककर लोग बुद्ध को दुसरे नामों से पुजने लगे थे| - प्रताप चाटसे

हाईकोर्ट में कुल न्यायाधीश 330 जिसमे 326 ब्राहमण जाति के है, एससी, एसटी, ओबीसी कैसे न्याय की उम्मीद रख सकते है। - सिद्धार्थ बागड़े (2021 की जानकारी)

भारत का पहला गणपती-- बौद्ध राजा डेमेट्रियस प्रथम (2nd AD)| भारत के बौद्ध राजा तथागत बुद्ध का प्रतीक हत्ती को अपने मुकुट पर लगाकर पहनते थे, इसलिए उन्हें "गजपति या गणपति अर्थात बौद्ध राजा" कहा जाता था| महाराष्ट्र में 15 वी सदी तक मौर्य बौद्ध राजाओं का राज था, इसलिए महाराष्ट्र के लोग आज भी उनकी गजपति या गणपति बप्पा मोरिया के रूप में पुजा करते हैं| बौद्ध राजा का गजपति/गणपति का वजूद मिटाने के लिए ब्राम्हणों ने गणपति का ब्राम्हणीकरण किया और पाखंडी काल्पनिक कथा लिखकर उसे पार्वती के मैल से पैदा हुआ बताया| -- बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क - प्रताप चाटसे

कुशवाह शब्द सन 1911 में बनाया गया जिसका उद्देश्य खेती करने वाली खत्तिय जाति शाक्य,मौर्य,सैनी, माली,काछी,कोइरी, मुराव,मुरई, मुरिया, मरार,हार्डिया आदि को जोड़ना था - गौरव शाक्य





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