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भारत की घातक शिक्षा नीति

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Thursday, April 18, 2019, 05:50 PM
Shiksha

भारत की घातक शिक्षा नीति
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 भारत में 1.4.2010 को लागू हुआ। इस अधिनियम से संबंधित विस्तृत जानकारी प्रज्ञा प्रकाश के द्वितीय अंक में प्रकाशित की गई थी। इस अधिनियम का लाभ 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को दिलाने के लिए सरकार द्वारा बहुत बड़ी तादाद में सरकारी विद्यालय खोलना, बड़ी संख्या में तादाद में सरकारी विद्यालय खोलना, बड़ी संख्या में शिक्षकों में शिक्षकों की नियुक्ती करना तथा सभी विद्यालयों को आवश्यक सुविधायें मुहय्या कराना चाहिये था। परन्तु इसके विपरीत जनप्रतिनिधि निज विद्यालयों को बढ़ावा देने की पहल कर रहे हैं क्योंकि उनके लड़के निजि विद्यालयों में पढ़ते हैं इन विद्यालयों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। इसके अलावा इन विद्यालयों के संचालकों से संबंधित अधिकारी और नेता को घुस मिलती है। यदि सरकारी की यही निति रही तो भारत के बहुसंख्यक बच्चों शिक्षा के अधिकार से वंचित होंगे। जब तक इस देश के नेताओं और अधिकारियों के बच्चों के दाखिले सरकारी विद्यालयों में यही किये जाते तब तक न तो सरकारी विद्यालयों की संख्या बढ़ेगी, नहीं शिक्षकों की संख्या बढ़ेगी, न ही सुविधायें प्राप्त होगी और न ही शिक्षा का अधिकार मिलेगा। शिक्षा के क्षेत्र में प्रगती से ही नागरिकों की प्रगति होगी और देश की प्रगति होगी। यह सोच हमारे जनप्रतिनिधियों की नही है। इसलिए तो सरकार शिक्षा पर अधिक खर्च नहीं करना चाहती। तब स्वाभाविक रूपसे यह प्रश्न पैदा होता है कि क्यां हमारे जनप्रतिनिधि जनहीत और देशहित में काम करते हैं?
इस शिक्षा निती के तहत दूसरी घातक बात यह हुई कि कक्षा 8 वी तक परिक्षायें नहीं होगी। हमारे देश में विदेशी नकल का प्रचलन है। इससे हमारे नेता ने क्यों वंचित रहना चाहिए? वह भी नकल मारते हैं और आम लोगों की तरह का उपयोग नहीं करते। हमारे मानव संसाधन मंत्री ने कॅनेडा की परीक्षा नहीं लेने की नकल तो मारी परन्तु जैसे उस देश में हर 12 विद्यार्थियो पर अच्छी पगार वाला एक शिक्षा होता है इस पर अकल नहीं लगाई। प्रारंभिक अवस्था में विद्यार्थियों का अच्छी तालीम न देकर उन्हें भविष्य में शिक्षा से वंचित करने का कहीं यह घिनौना खेल तो नहीं ?
जहां तक उच्च शिक्षा का प्रश्न है, हमारे देश में निजि महाविद्यालय बनाने को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इस वास्तविकता को नजरअंदाज किया जा रहा है कि हमारे देश में जितने भी वैज्ञानिक बने उन सभी में सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षा ली थी। उनमें से कोई भी निजी महाविद्यालय का छात्र नहीं था।
यह झूठा प्रचार भी किया जा रहा है कि निजिकरण के कारण विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई है। विज्ञान  द्वारा  संस्थानों  की  निर्मिती की जाती हैं। जितनी अधिक संसाधनों की निर्मिती की जाती हैं उतनी ही विज्ञान के क्षेत्र में प्रगती मानी जाती है। संसाधन निर्मिती में हमारे देश की प्रगती नगण्य है। इसलिए हमारे देश में विज्ञान की प्रगति भी नगण्य है। भारत के निजी  उद्योगों में  तंत्रज्ञान अधिकार विदेशों से खरिदा जाता है और कहीं कहीं तो चोरी भी किया जाता है। भारत के निजी औद्योगिक क्षेत्र का मकसद वैज्ञानिक प्रगती न होकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाना यही है। भारत का पुंजीपति अपनी काले धन की कमाई में से कुछ हिस्सा राजनेताओं को भी देता है। इसलिए असलियत को छुपायाँ नहीं जाता है और झूठी बातें प्रचारित की जाती है। क्या शिक्षा के क्षेत्र में गलत नितियां अपनाकर हमारी सरकार जनता के साथ धोखा कर रहीं हैं और देश को विनाश की और ले जा रही हैं?
- संग्रहक - निलेश वैद्य

 





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