शरबत Narendra Shende narendra.895@rediffmail.com Sunday, May 4, 2025, 02:11 PM #शरबत का इतिहास एक बेहद दिलचस्प सांस्कृतिक और भाषायी यात्रा है, जो मध्यपूर्व की गर्म धरती से शुरू होकर दक्षिण एशिया के गलियारों तक फैली हुई है। यह केवल एक पेय नहीं रहा, बल्कि सभ्यताओं, स्वादों, और मेहमाननवाज़ी की साझी विरासत बन चुका है। "शर्बत" शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द 'Sharba' से हुई, जिसका अर्थ है "घूंट" या "पीने की चीज़"। अरबी और फ़ारसी चिकित्सा परंपराओं में शर्बत का प्रयोग न केवल स्वाद के लिए, बल्कि औषधीय गुणों के कारण भी किया जाता था। यूनानी-इस्लामी चिकित्सा (यानी युनानी-तिब्बी परंपरा) में गुलाब, सौंफ, इलायची, नींबू, खस आदि से बने शर्बतों को शरीर को ठंडक देने और संतुलन बनाए रखने के लिए सुझाया जाता था। 8वीं से 13वीं सदी के दौरान, अब्बासी ख़िलाफ़त के ज़माने में बग़दाद, दमिश्क और काहिरा जैसे शहरों में शर्बत बहुत लोकप्रिय हुआ। उस समय यह बर्फ और फलों के रस से मिलाकर ठंडा करके परोसा जाता था, और इसे विशेष आयोजनों और गर्मियों में पेश किया जाता था। उस्मानी (Ottoman) तुर्कों ने इसमें कई प्रयोग किए — गुलाब जल, चेरी, अनार, और हिबिस्कस जैसे तत्वों को मिलाकर स्वादिष्ट पेय तैयार किए। यह "शरबत" (Şerbet) के नाम से जाना गया। ओटोमन साम्राज्य की रसोई में यह रिवाज़ था कि किसी मेहमान के आने पर या शादी जैसे अवसरों पर शर्बत परोसा जाए। शर्बत भारत में मुख्यतः मुग़ल काल के दौरान आया। बाबर को भारत की गर्मी से शिकायत थी, और उसने काबुल से बर्फ मंगवाकर शर्बत पीने की परंपरा शुरू की। मुग़लों ने भारत में गुलाब का शर्बत, खस का शर्बत, केवड़ा, बेल, आम पन्ना, और औषधीय जड़ी-बूटियों से बने कई प्रकार के शर्बतों को लोकप्रिय बनाया। आम जनता के बीच भी यह पेय लोकप्रिय होता गया, क्योंकि इसकी सामग्री स्थानीय रूप से उपलब्ध थी और यह गर्मी से राहत देने वाला सस्ता उपाय था। ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय शर्बतों को “cordials” और “syrups” के रूप में पश्चिमी दुनिया में पेश किया गया। रूह अफ़ज़ा, जो 1907 में हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद ने तैयार किया था, भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्रसिद्ध यूनानी-तिब्बी शर्बत बना... Tags : South Asia linguistic journey cultural extremely history of Sharba