imagesimagesimagesimages
Home >> इतिहास >> प्राचीन विराटनगर (जयपुर) के बौद्ध स्थलों का यात्रा वृतान्त

प्राचीन विराटनगर (जयपुर) के बौद्ध स्थलों का यात्रा वृतान्त

TPSG

Friday, April 26, 2019, 01:09 PM
Virat Nagar

प्राचीन विराटनगर (जयपुर) के बौद्ध स्थलों का यात्रा वृतान्त
मांगीलाल आर्य, मेडता सिटी, नागौर
भगवान बुद्ध एक ऐतिहासिक महामानव थे। उनके उपदेश सार्वकालिक, सार्वभौमिक और सार्वजनीन हैं। उनके समय में 16 महाजनपद थे जिनमें मतस्य महाजनपद भी एक था यह राजस्थान राज्य के अलवर, जयपुर और दौसा क्षेत्र में स्थित था। उसकी राजधानी विराटनगर (बैराठ) थी। इस स्थान को देखने एवं वास्तविकता से रूबरू होने के लिए हाल ही में मैं जयपुर से बस द्वारा विराटनगर 16 जून 2013 को पहुंचा। यह स्थान जयपुर से शाहपुरा होते हुए लगभग 02 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। बस स्टैण्ड से उतरते ही पर्यटन विभाग राजस्थान का एक बोर्ड लगा ‘पर्यटन संकेत’ दिखाई दिया। इस बोर्ड को देखने/पढ़ने पर ज्ञात हुआ कि यहां पर सम्राट अशोक का शिलालेख और बौद्ध स्तूप है। सर्वप्रथम मैंने सम्राट अशोक का शिलालेख देखने के लिए निश्चय किया। यह स्थान बस स्टैण्ड से दो किलोमीटर उत्तर-पश्चिमी दिशा पहाड़ी के समीप है। इस विशाल शिला पर उकेरे हुए सम्राट अशोक का पालि भाषा का शिलालेख है। वहां जाने के लिए एक संकरी पगडण्डी बनी हुई है। सम्राट अशोक का तीसरी शताब्दी पूर्व का शिलालेख है। इसके पास में अशोक का शिलालेख लिखा नोटिस बोर्ड टूटा जमीन पर पड़ा है। जो पर्यटकों एवं अन्य की ठोकरें खा रहा है। यह शिलालेख विभाग द्वारा छत बनाकर एक दरवाजा लगाया था जिसे भी कोई उखाड़ कर ले गया है। यह शिलालेख पुरातत्व विभाग की लापरवाही एवं उदासीनता का शिकार है। किसी को पूछने पर बताया कि यहां पर पुरातत्व विभाग के कार्मिक भी नियुक्त हैं। लेकिन वे यहां अपनी ड्यूटी के प्रति असंवेदनशील है। यदि इस शिलालेख की उचित संरक्षा न की जाये तो यहां पर्यटकों एवं बौद्ध उपासकों की आने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है। क्योंकि यह बौद्ध धर्म का समृद्ध पुरावशेष है। यहीं पर सम्राट अशोक का आगमन हुआ था और धम्म संदेश लिखवाये थे। मैं दोपहर बाद बौद्ध स्तूप देखने के लिए रवाना हुआ यह भी विराटनगर से दक्षिण में 2 किलोमीटर दूर बीजक की पहाड़ी पर स्थित है। यहां जाने के लिये कच्ची सड़क बनी हुई है। पहाड़ी के नीचे किसानों के खेत हैं। उनमें से एक किसान बनवारी सैनी गाईड के रूप में मेरे साथ हो गया। बीज की पहाड़ी पर चढ़ने के लिए आधी दूरी तक सड़क बनी हुई है। जो पैदल यात्रियों के लिए है। इस पहाड़ी पर बौद्ध स्तूपों के पास पुरातत्व विभाग का एक सूचनापट्ट लगा हुआ है। जिस पर निम्न विवरण है:-
‘उत्खनित स्थला बैराठ’ अधिसूचित 195, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जयपुर मण्डल
उत्खनित स्थल बैराठ प्राचीन मतस्य देश की राजधानी है। बैराठ या विराटनगर के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना राजा विराट ने की थी जिसकी राज्य में पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास का तेरहवां वर्ष बिताया था। 
यह स्थल सम्राट अशोक के दो शिलालेखों की तीसरी सदी ई0पू0 की प्रापित के कारण प्रसिद्ध है। सन् 1935-36 ई0 में यहां बीजक की पहाड़ी पर करवाये गये पुरातात्विक उत्खनन के फलस्वरूप पक्की ईटों का बना यह मौर्यकालीन वृत्ताकार चैत्यगृह (व्यास 8.23 मीटर) जिसमें एकान्तर 26 अष्टकोणीय लकड़ी के स्तम्भ भी लगे थे ऐसा प्रकाश में आया है। इसके अतिरिक्त एक बौद्ध विहार के अवशेष प्रकाश में आये जिसमें एक खुले प्रांगण के चतुर्दिक कक्षों की दोहरी पक्ति विद्यमान है। भारत में उत्खनन से प्राप्त मंदिरों के अवशेषों में यह प्राचीनतम माना जाता है। अधीक्षण पुरातत्वविद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जयपुर मण्डल 
इस प्रकार यह प्राचीन बौद्ध विरासत है लेकिन मनुवादियों ने इसके पास ही एक चट्टान केे नीचे हनुमान मूर्ति रखकर श्री बीजक हनुमान मंदिर घोषित कर दिया है। और पूजा अर्चना शुरू कर दी है। जबकि यह स्थान बुद्ध स्तूप के परिसर में है। भविष्य में यह बड़ा विवाद का विषय बनेगा। यदि मन्दिर बनाना ही है तो पहाड़ियों में अन्य स्थान भी है। यदि पुरातत्व विभाग के कर्मचारी संवेदनशील हो तो ऐसे अतिक्रमण नहीं होते। अभी भी समय है कि इस अतिक्रमण को हटाकर भविष्य मंे अतिक्रमण नहीं होने दे।
यदि बौद्ध स्तूप पर उचित संरक्षण एवं देखभाल की जाये तथा यहां पर सुविधाएं बढ़ाई जाये तो यह भी एक विश्व पर्यटन स्थल बन सकता है। मैंने इसके लिये भारतीय बौद्ध महासभा राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष श्री रामस्वरूप बौद्ध से चर्चा की है कि इस सम्बन्ध में पुरातत्व विभाग एवं राज्य सरकार को ज्ञापन/पत्र व्यवहार करके अवगत कराया जाए।
मांगीलाल आर्य, मेडता सिटी, नागौर
संग्रहक - टीपीएसजी

 





Tags : Viratnagar Jaipur capital Rajasthan region time universal greatman Lord Buddha