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अपने प्रिय अश्व कंथक पर आरूढ़ होकर

TPSG

Saturday, April 27, 2019, 11:15 PM
ashv par savar

अपने प्रिय अश्व कंथक पर आरूढ़ होकर,छन्न सेवक को साथ लेकर सिद्धार्थ गौतम आलार कालाम के आश्रम तक गये...वहां से निकट ही बहती हुई नदी के तट पर पहुँचकर अपने मूल्यवान आभूषण और वस्त्रों को उतार कर, मुंडन करके सिद्धार्थ गौतम श्रमण बनें.और आलार कालम के आश्रम की ओर पैदल ही चल पड़े। वस्त्र, आभूषण और खाली अश्व लेकर छन्न कपिलवस्तु वापिस आये...राजमहल के प्रवेश-द्वार तक आकर अश्व ज़ोर से हिनहिनाया..राजमहल से परिवार का प्रत्येक सदस्य राजकुमार लौट आये सोचकर हर्ष उत्सुक होकर बाहर निकल आये...और खाली अश्व  देखकर फिर शोकमग्न होकर हताश वापिस हो गये।
पूरी रात सब शोक-विह्वल होकर रोते हुए रात बिताते थे सुबह तक मानो वे पथरा गये थे। थके हुए क्लांत मुख। अश्व की घोर हिनहिनाहट सुनकर जो प्रजा आशाभिमुख होकर देखने लगी थीं,वही खाली अश्व देखकर दुःख-सागर में डूब चुकी थी। अश्व अपना दुःख हिनहिनाकर व्यक्त कर रहा था तो प्रजा दुःख कातर होकर विलाप कर रही थीं...
इस प्रसंग को महाकवि अश्वघोष ने अपने बुद्ध-चरित ग्रंथ में अत्यंत करूणामय शब्दों में अभिव्यक्त किया है..बुद्ध -चरित काव्यमय रचना है। इस काव्य को वे तारवाद्य पर बजाते गाते हुए गांव -गांव प्रवास करते थे ...इस प्रसंग को गाते हुए उनकी दोनों आंखों से अश्रुधारा अविरल बहती जाती थीं और श्रोता सुनते हुए भाव-विभोर हो जाते थे...इसी प्रसंग पर ये शिल्प आधारित है...भरहूत स्तूप पर उत्कीर्णित...आज ये लंदन म्यूज़ियम में सुरक्षित है।

-------महेंद्र शेगांवकर/राजेंद्र गायकवाड़ .





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