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पाषाण शिल्प

TPSG

Tuesday, July 7, 2020, 09:51 AM
Stone craft

बुद्ध प्रतीक के शिल्प में Mes Aynak के उत्खनन में प्राप्त ये पाषाण शिल्प अत्यंत दुर्लभ है। अपनी तरह का यह एकमेव शिल्प है, ऐसा मुझे प्रतीत होता है....

सिद्धार्थ गौतम शाक्य थे..."खत्तीय"ऐसा उनका उल्लेख मिलता है। खत्तीय "आदित्य "गोत्र के थे... ऐसा प्रमाण मिलता है। आदित्य यानी सूर्य... सूर्यवंशीय क्षत्रिय...

सिद्धार्थ गौतम को वैशाख पूर्णिमा को गया में पीपल वृक्ष के नीचे,एक वज्रासन पर अधिष्ठित होते हुए "संबोधि "प्राप्त हुई थी...

उसके पश्चात आषाढ़ पूर्णिमा को सारनाथ में पंचवर्गीय भिक्खुओं को उन्होंने प्रथमतः अपना तत्वज्ञान प्रसारित करके "धम्मचक्रप्रवर्तन"किया ।तब उन पंचवर्गीय भिक्खुओं ने तथागत का आदरपूर्वक स्वागत कर उन्हें बैठने के लिए वज्रासन दिया...

ये शिल्प अफगानिस्तान के रेशम मार्ग के प्राचीन व्यापारिक महत्व के मेस आयनाक की उस नगरी में मिला जो कभी चहल पहल से भरा होता था...

ये शहर कुषाण वंशीय सम्राट कनिष्क के आधिपत्य में था...इस कारण ये शिल्प गांधार कला के एक उत्कृष्ट नमूने के रूप में हम देख सकते हैं।

इस शिल्प में खाली वज्रासन पीठ पर पूर्ण प्रकाशित सूर्य

दर्शाया गया है... और दोनों तरफ हाथ जोड़कर दो अलग अलग गण समूह के उपासक, व्यक्ति अथवा बोधिसत्व दिखाई दे रहे हैं .... उनके ऊपरी भाग में आकाशमार्ग से

आने वाले दो यक्ष दोनों तरफ दिखाई दे रहे हैं...

वे आने वाले तथागत का नम्र भाव से स्वागत कर रहे हैं...

उनमें से एक ने अपनी लंबी केशराशि से जूड़ा बाँध रखा है तथा दूसरा अपनी गण परंपरानुसार फेंटा बाँधे हुए हैं

वैशिष्ट्यपूर्ण केश पद्धति और फेंटे से उनके गण की पहचान होती थी...

बायें कान, दायें कान या माथे की ओर झुकावट में जूड़ा बाँधने या फेंटा बाँधने की वैसी ही विशिष्ट पद्धतियां थीं... सिर पर केश बाँधे व्यक्ति के चेहरे पर दाढ़ी मूछें हैं...

ये सुमेरियन असेरियन संस्कृति का प्रतीक हैं... ये फेंटा

पर्शियन, अफगान अथवा भारतीय संस्कृति का प्रतीक हैं...

आषाढ़ पूर्णिमा के अवसर पर हम तथागत के स्वागत के लिए उत्सुक हैं....!

ऐसे अभिप्राय के इस शिल्प को मैं महत्वपूर्ण मानता हूँ।

------------------------------- महेंद्र शेगाँवकर

हिंदी रूपान्तरण : राजेंद्र गायकवाड़





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