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अनार्यो का संग्राम

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Wednesday, May 1, 2019, 05:13 PM
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अनार्यो का संग्राम
आर्यों के साहित्य में अक्सर राक्षस, दानव, दैत्य, अनार्य, असुर, किरत, नाग, द्रविड़, नामों का उल्लेख मिलता है। जिन्हें आर्यों के साहित्य में सद्यन्त्रपूर्वक खलनायक के रूप में पेश किया गया है। किन्तु असली सच यह है कि राक्षस, दानव, दैत्य, अनार्य, असुर, किरत, नाग, द्रविड़, खलनायक नही बल्कि इस देश के वर्तमान वंचितों, शोषितों, पीडितों के वंशज है। जो भारत देश के असली हीरो और मूलनिवासी शासक थे।
विदेशी आर्यों के नेता इन्द्र, ब्रह्मा, विष्णु, महेश और आर्य देवताओ को राक्षस, दानव, दैत्य, अनार्य, असुर, किरत, नाग, द्रविड़ कई बार पानी पीला चुके है। ये देवता इनसे जान बचाने कई बार भागे भागे मुह छुपाने गली कुचे खोजते नजर आये है।
सच कहाँ जाय तो ब्राह्मणी साहित्य का सुर -असुर, आर्य -अनार्य, देवता -दानव आदि का युद्ध दो संस्कृति का युद्ध है। विदेशी आर्य संस्कृति में यज्ञों में हजारों पशु की बलि, मांसाहार, सुरापान (मदिरा का सेवन ), स्वछन्द यौवानाचार, जुवा खेलना आम बात थी। देवताओं(आर्यों ) के सुरापान के कारण ही इन्हें सुर और अनार्यों के सुरापान न करने के कारण इन्हें असुर कहाँ जाता था।
भारतीय मूलनिवासी राक्षस, दानव, दैत्य, अनार्य, असुर, किरत, नाग, द्रविड़ हमेशा ही आर्यों के इन अनैतिक कार्य का विरोध किया करते करते थे, यज्ञों में हजारों पशुओं की बलि होने के कारण यज्ञों में विग्न (बाधाए ) उत्पन्न किया करते थे। होली का त्यौहार भी दो संस्कृतियों के संघर्ष का परिणाम ही है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप मूलनिवासी अनार्य थे। जो विदेशी आर्यो के संस्कृति के खिलाफ थे। वह चाहते थे कि उनका पुत्र मुर्ख आर्य भगवान नारायण की आराधना छोड दे।
आर्यों के साहित्य ने ऐसा षडयंत्र रचा है कि आज मूलनिवासी भी अपने ही वंशजो के विनाशलीला में शामिल होकर जश्न मनाने लगे है। - शाक्य हरीश प्रियदर्शिनी

 





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