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शूद्रों का सच्चा इतिहास

TPSG

Thursday, October 14, 2021, 01:06 PM
Sudhara

शूद्रों का सच्चा इतिहास

आज भारत के बाहर निकलों तो सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है। अगर केाई भारतीय विदेशियों को अपना इतिहास बताता है तो सभी विदेशी बहुत हंसते है, मजाक बनाते है। सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है, फिर भी भारत के 95 प्रतिशत लोगो को अंधेरे में रखा गया है। क्योकि अगर भारत का सच्चा इतिहास सामने आ गया तो ब्राम्हणों, राजपूतों और वैश्यों द्वारा समाज के सभी वर्गो पर किये गए अत्याचार सामने आ जायेंगे, और देश के लोग हिन्दू नाम के तथाकथित धर्म की सच्चाई जानकर हिन्दू धर्म को मानने से इंकार कर देंगे। कोई भी भारतवासी हिन्दू धर्म को नहीं मानेगा। ब्राम्हणों का समाज में जो वर्चस्व है, वो समाप्त हो जायेगा।

बहुत से लोग यह नहीं जानते कि भारत में कभी देवता थे ही नहीं, और न ही असुर थे। ये सब कोरा झूठ है, जिसको ब्राम्हणो ने अपने अपने फायदे के लिए लिखा था, और आज ब्राम्हण वर्ग इन सब बातों के द्वारा भारत के समाज के हर वर्ग को बेवकुफ़ बना रहा है। अगर आम आदमी अपने दिमाग पर जोर डाले और सोचे, तो सारी सच्चाई सामने आ जाती है। ब्राम्हण, राजपूत और वैश्य ईसा से 3200 साल पहले में भारत मंे आये थे। आज ये बात विज्ञाान के द्वारा साबित हो चुकी है। लेकिन ब्राम्हण, राजपूत और वैश्य इतने चतुर है कि वो विज्ञाान के द्वारा प्रमाणित इतिहास और जानकारी भारत के अन्य लोगों के साथ बांटना ही नहीं चाहते।

क्योकि अगर ये जानकारी भारत के लोगों केा पता चल गई तो भारत के लोग ब्राम्हणो, राजपूतों और वैश्यों को देशद्रोही, अत्याचारी और अधार्मिक सिद्ध कर के देश से बाहर निकाल देंगे। भारत के लोगों को सच्चाई पता ना चले इस के लिए आज भी ब्राम्हणों ने ढेर सारे संगठन जैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी बना रखें है, हजारों धर्मगुरू बना रखे है, जो सिर्फ ढोंग, पाखंड और भारत के लोगों को झूठ बता कर अंधेरे में रखते है, क्यो रखते है ? ताकि भारत में 95 प्रतिशत लोगों को भारत का सच्चा इतिहास पता ना चल जाये और वो 95 प्रतिशत लोग ब्राम्हणों को देशद्रोही करार दे कर भारत से ना निकल दे। भारत से ब्राम्हणों का वर्चस्व ही खत्म ना हो जाये। यह भारत के सच्चे इतिहास की शुरूआत है तो यहाॅ कुछ बातों पर प्रकाश डालना बहुत जरूरी है। ताकि लोगों को थोडा तो पता चले कि आखिर ब्राक्हणों, राजपूतों और वैश्यों ने भारत मंें आते ही क्या किया जिस से उनका वर्चस्व भारत पर कायम हो पाया:

1. ईसा से 3200 साल पहले जब भारत में रूद्रों का शासन हुआ करता था। भारत में एक विदेशी जाति आक्रमण करने और देश को लूटने के उद्देश्य आई। वह जाति मोरू से यहाॅ आई जिनकों ‘‘मोगल’’ कहाॅ जाता था। मोरू प्रदेश का सागर के उत्तर में यूरेशिया को बोला जाता था। यही यूरेशियन लोग कालांतर में पहले ‘‘देव’’ और आज ब्राम्हण कहलाते है। यूरेशियन लोग भारत पर आक्रमण के उद्देश्य से यहाॅ आये थे। लेकिन भारत में उस समय गण व्यवस्था थी, जिसको पार पाना अर्थात जीतना युरेशिनों के बस की बात नहीं थी। भारत के मूल निवासियों ओर यूरेशियन आर्यो के बीच बहुत से युद्ध हुए। जिनको भारत के इतिहास और वेद पुराणों में सुर असुर संग्राम के रूप मंे लिखा गया है। भारत की शासन व्यवस्था दुनिया की श्रोष्ठतम शासन व्यवस्था थी। जिसे गण व्यवस्था कहाॅ जाता था और आज भी दुनिया के अधिकांश देशो ने इसी व्यवस्था को अपनाया है। ईसा पूर्व 3200 के बाद युरेशियनों और मूल निवासियों के बीच बहुत से युद्ध हुए जिन में यूरेशियन आर्यो को हार का मुॅह देखना पड़ा।

2. पिछले कई सालों मंे भारत में इतिहास विषय पर हजारों शोध हुए। जिस में कुछ शोधों का उल्लेख यहाॅ किया जाना बहुत जरूरी है। जैसे संस्कृत भाषा पर शोध, संस्कृत भाषा के लाखों शब्द रूस की भाषा से मिलते है। तो यह बात यहाॅ भी सिद्ध हो जाती है ब्राम्हण यूरेशियन है। तभी आज भी इन लोगो की भाषा रूस के लोगों से मिलती है। कालांतर में यूरेशिया में इन लोगों का अस्तिव ही मिट गया तो भारत में आये हुए यूरेशियनांें के पास वापिस अपने देश में जाने रास्ता भी बंद हो गया और यूरेशियन लोग भारत में ही रहने पर मजबूर हो गए। यूरेशियनों को मजबूरी में भारत में ही रहना पड़ा और आज यूरेशियन भारत का ही एक अंग बन गए है जिनकों आज के समय में ब्राम्हण, राजपूत और वैश्य कहाॅ जाता है।

3. ईसा पूर्व 3200 में यूरेशिया से आये लोगों की चमड़ी का रंग गोरा था आॅखों का रंगा हल्का था और इनकी खोपड़ी लम्बाई लिए हुए थी। ब्राम्हण, राजपूत और वैश्य यूरेशिया से आये है यह बात 2001 में प्रसिद्ध शोधकर्ता माइकल बामशाद ने वाशिंगटन विश्वविद्यालय में भारत की सभी जातियों के लोगों का डीएनए प्ररिक्षण करके सिद्ध कर दी थी। डीएनए परिक्षण में यह बात साफ हो गई थी कि क्रमशः 99.99 प्रतिशत राजपूत का 99.88 प्रतिशत और वैश्य का 99.86 प्रतिशत डीएनए यूरेशियन लोगों से मिलता है। बाकि सभी जाति के लोगो का डीएनए सिर्फ भारत के ही लोगों के साथ मिलाता है।

4. जब यूरेशियन भारत में आये तो यह आक्रमणकारी लोग नशा करते थे। जिसको कालांतर में ‘‘सोमरस’’ और आज शराब कहा जाता है। यूरेशियन लोग उस समय सोमरस पीते थे तो अपने आपको ‘‘सुर’’ और अपने समाज को ‘‘सुर समाज’’ कहते थे। यूरेशियन लोग ठंडे प्रदेशों से भारत में आये थे, ये लोग सुरापान करते थे तो इन लोगों ने भारत पर कुटनीतिक रूप से विजय पाने के लिए अपने आपको देव और अपने समाज को देव समाज कहना प्रारम्भ कर दिया।

5. भारत के लोग अत्यंत उच्च कोटि के विद्वान हुआ करते थें इस बात का पता गण व्यवस्था के बारे अध्ययन करने से चलता है। आज जिस व्यवस्था को दुनिया के हर देश ने अपनाया है, और जिस व्यवस्था के अंतर्गत भारत पर सरकार शासन करती है। वही व्यवस्था 3200 ईसा पूर्व से पहले भी भारत मंे थी। पुरे देश का एक ही शासन कर्ता हुआ करता था। जिसको गणाधिपति कहाॅ जाता था।

6. गणाधीश हुआ करता था, और गणाधीश के नीचे विभिन्न गण नायक हुआ करते थे जो स्थानीय क्षेत्रों में शासन व्यवस्था देखते या संभालते थे। यह व्यवस्था बिलकुल वैसी थी। जैसे आज भारत का राष्ट्रपति, फिर प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री के नीचे अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्री। कालांतर में भारत पर रूद्रों का शासन हुआ करता था। भारत में कुल 11 रूद्र हुए जिन्होनें भारत पर ईसा 3200 साल के बाद तक शासन किया। सभी रूद्रो को भारत देवाधिदेव, नागराज, असुरपति जेसे शब्दों से विभुषित किया जाता है। रूद्र भारत के मूल निवासी लोगों जिनको उस समय नागवंशी कहा जाता था पर शासन करते थे। इस बात का पता ‘‘वैदो और पुराणों’’ में वर्णित रूद्रो के बारे अध्ययन करने से चलता है। आज भी ग्यारह के ग्यारह रूद्रों को नाग से विभूषित दिखाया जाता है। नागवंशियों में कोई भी जाति प्रथा प्रचलित नहीं थी। इसी बात से पता चलता है कि भारत के लोग कितने सभ्य, सुशिक्षित और सुशासित थे। इसी काल को भारत का ‘‘स्वर्ण युग’’ कहा जाता था और भारत को विश्व गुरू होने का गौरव प्राप्त था।

7. असुर कौन थे? ये भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्योंकि भार के बहुत धार्मिक गन्र्थो में असुरों का वर्णन आता है। लेकिन ये बात आज तक सिद्ध नहीं हो पाई कि असुर थे भी या नहीं। अगर थे, तो कहा गए? और आज वो असुर कहाॅ है? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमें वेदों और पुराणों का अध्ययन करना पडेगा। आज भी हम खास तौर पर ‘‘शिव महापुराण’’ का अध्ययन करे तो असुरांे के बारे सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। असुराधिपति भी रूद्रों को ही कहा गया है। शिव से लेकर शंकर तक सभी रूद्रों को असुराधिपति कहा जाता है। आज भी रूद्रों को असुराधिपति होने के कारण अछूत या शुद्र देवता कहा जाता है। कोई भी ब्राम्हण रूद्र पूजा के बाद स्नान करने के बाद ही मंदिरों में प्रवेश करते है या गंगा जल इत्यादि अपने शरीर पर छिड़क कर दुसरे देवताओं की पूजा करते है। नागवंशी लोग सांवले या काले रंग के हुआ करते थे ओर नागवंशी सुरापान नहीं करते थे। आज भी आपको जगह-जगह वेदों और पुराणों में लिखा हुआ मिल जायेगा कि नाग दूध पीते है कोई भी नाग ‘‘सूरा’’ अर्थात शराब का सेवन नहीं करते थे। अर्थात भारत के मूल निवासी कालांतर मंे असुर कहलाये और आज उन्हीं नागवंशियों को शुद्र कहा जाता है।

8. युरेशियनों ने भारत कूटनीति द्वारा भारत की सत्ता हासिल की और पहले तीन महत्वपूर्ण नियम बनाये जिनके कारण आज भी ब्राम्हण पुरे समाज में सर्वश्रोष्ठ माने जाते हैः

9. वर्ण व्यवस्था: युरेशियनों ने सबसे पहले वर्ण-व्यवस्था को स्थापित किया अर्थात यूरेशियन साफ रंग के थे तो उन्होने अपने आपको श्रेष्ठ पद दिया। यूरेशियन उस समय देवता कहलाये और आज ब्राम्हण कहलाते है। भारत के लोग देखने में सांवले और काले थे तो मूल निवासियों को नीच कोटि का बना दिया गया। 400 ईसा पूर्व या उसे से पहले भारत के मूल निवासियों को स्थान और रंग के आधार पर 3000 जातियों में बांटा गया। आधार बनाया गया वेदों और पुराणों को, जिनको यूरेशियन ने संस्कृत में लिखा। भारत के मूल निवासियांे को संस्कृत का ज्ञाान नहीं था तो उस समय जो भी यूरेशियन बोल देते थे उसी को भारत के मूल निवासियांे ने सच मान लिया। जिस भी मूल निवासी राजा ने जाति प्रथा का विरोध किया उसको युरेशियनों ने छल कपट या प्रत्यक्ष युद्धों में समाप्त कर दिया। जिस का वर्णन सभी वेदों और पुराणांे में सुर-असुर संग्रामों के रूप में मिलाता है। लाखों मूल निवासियों को मौत के घाट उतारा गया। कालांतर में उसी जाति प्रथा को 3000 जातियों को 7500 उप जातियों मंे बाटा गया।

10. शिक्षा व्यवस्था : इस व्यवस्था के अंतर्गत युरेशियनों ने भारत के लोगों के पढने लिखने पर पूर्ण पाबन्दी लगा दी। कोई भी भारत का मूल-निवासी पढ़ लिख नहीं सकता था। सिर्फ यूरेशियन ही पढ़ लिख सकते थे। भारत के लोग पढ़ लिख ना पाए इसके लिये कठोर नियम बनाये गए। मनुस्मृति का अध्ययन किया जाये तो यह बात सामने आती है। कोई भी भारत का मूल निवासी अगर लिखने का कार्य करता था तो उसके हाथ काट देने का नियम था। अगर कोई मूल-निवासी वेदों को सुन ले तो उसके कानों में गरम शीशा या तेल से भर देने का नियम था। इस प्रकार भारत के लोगों को पढने लिखने से वंचित कर के युरेशियनों ने वेदों और पुराणों में अपने हित के लिए मनचाहे बदलाव किये। ये व्यवस्था पहली इसवी से 1947 तक चली। जब 1947 में देश आजाद हुआ तो डाॅ. भीम राव अम्बेड़कर के प्रयासों से भारत के मूल-निवासियों को पढ़ने लिखने का अधिकार मिला। आज भी ब्राम्हण वेदों और पुराणांे में नए-नए अध्याय जोड़ते जा रहे है और भारत के मूल निवासियों को कमजोर बनाने का प्रयास सतत जारी है।

11. धर्म व्यवस्था : धर्म व्यवस्था ही भारत के मूल निवासियों के पतन के सबसे बड़ा कारण था। धर्म व्यवस्था कर के युरेशियनो ने अपने आपको भगवान तक घोषित कर दिया। धर्म व्यवस्था में ‘‘दान का अधिकार’’ बना कर युरेशियनों ने अपने आपको काम करने से मुक्त कर दिया और अपने लिए मुफ्त में ऐश करने

12. प्रबंध भी इसी दान के अधिकार से कर लिया। धर्म व्यवस्था के नियम भी बहुत कठोर थे। जैसे कोई भी भारत का मूल निवासी मंदिरों, राज महलों और युरेशियनों के आवास में नहीं जा सकता था। अगर कोई मूल निवासी ऐसा कता था तो उसको मार दिया जाता था। आज भी यूरेशियन पुरे भारत में अपने घरांे में मूल निवासियांे को आने नहीं देते। आज भी दान व्यवस्था के चलते भारत के मंदिरों में कम से कम 10 ट्रिलियन डाॅलर की सम्पत्ति युरेशियनों के अधिकार हासिल करके तो युरेशियनों ने मानवता की सारी सीमा ही तोड़ दी। यहाॅ तक भारत में रूद्र शासन से समय से पूजित नारी को भी सम्पत्ति में शामिल कर लिया। नारी को सम्पत्ति रखने का अधिकार नहीं था। यूरेशियन भारत की किसी भी राजा सम्पत्ति को भी ले सकता था। यूरेशियन किसी भी राजा की उसके राज्य से बाहर निकल सकता था। यूरेशियन किसी की भी स्त्री की ले सकता था। यूरेशियन किसी भी युरेशियनों को राजा की स्त्री के साथ संम्भोग की पूर्ण आजादी थी। अगर किसी राजा के सन्तान नहीं होती थी तो यूरेशियन राजा की स्त्री के साथ संम्भोग कर बच्चे पैदा करता था। जिसे कालांतर में ‘‘नियोग’’ पद्धति कहा जाता था। इस कारण राजा की होने वाली संतान भी यूरेशियन होती थी। शुद्र व्यवस्था के द्वारा तो युरेशियनांे ने सारे देश के मूल निवासियों को अत्यंत गिरा हुआ बना दिया। हजारों कठोर नियम बनाये गए। मूल निवासियों का हर प्रकार से पतन हो गया। मूल निवासी किसी भी प्रकार से ऊपर उठने योग्य ही नहीं रह गए। मूल निवासियों पर शासन करने के लिए और बाकायदा मनु-स्मृति जैसे बृहद ग्रन्थ की रचना की गई। आज भी लोग 2002 से पहले प्रकाशित के मनु-स्मृति की प्रतियांे को पढंेगे तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी।

यह कुछ महत्वपूर्ण बातें थी जिन पर भारत का इतिहास लिखने से पहले प्रकाश डालना जरूरी था। यही कुछ बाते है जिनका ज्ञाान भारत के मूल निवासियों को होना बहुत जरूरी है। अगर भारत के मूल निवासी युरेशियनी के बनाये हुए नियमों को मानने से मना कर दे। युरेशियनों की बनायीं हुई वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, सम्पत्ति व्यवस्था, वेद व्यवस्था, धर्म व्यवस्था को ना माने। सभी मूल निवासी ब्राम्हणों के बनाये हुए जातिवाद के बन्धनों से स्वयं को मुक्त करें ओर सभी मूल निवासी नागवंशी समाज की फिर से स्थापना करे। सभी मूल निवासी मिलजुल कर देश का असली इतिहास अपने लोगों को बतायें। सभी नागवंशी अपनी काबलियत को समझे। तभी भारत के मूल निवासी पुनः उसी विश्व गुरू के पद को प्राप्त सकते है और भारत में फिर से स्वर्ण युग की स्थापना कर सकते हैै। जल्दी ही भारत का विस्तृत इतिहास अलग अलग अध्यायों के रूप में प्रस्तुत किया जायेगा। हमारी टीम रात दिन भारत के इतिहास पर हुए हजारों शोधों और पुस्तकों का अध्ययन कर रही है, और भारत का सच्चा इतिहास लिखा जा रहा है।

- उक्त जानकारी इटरनेट पर न्यूज के माध्यम से प्राप्त की गई है जिस पर सच्चाई की खोज हेतु है विचार विमर्श जारी है सही जानकारी प्राप्त होते ही इसमे सुधार किया जावेगा





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