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कैसे धैर्य रखूं मैं

Siddharth Bagde
tpsg2011@gmail.com
Friday, June 20, 2025, 05:49 PM
dherya

भीतर कुछ जलता है,

सन्नाटा जैसे धधकती चिंगारी हो,

चेहरे पर शांति का मुखौटा है,

पर आत्मा सवालों की बारूद से भरी है।

कहते हैं –

"समय के साथ सब ठीक हो जाएगा,"

"छोड़ दे, तुझसे क्या लेना?"

"तेरा क्या जाता है?"

पर जो जाता है, वह कहीं न कहीं मेरा ही हिस्सा होता है।

कभी पड़ोस की बहन,

कभी ग़रीब की थाली,

कभी बच्चे का सपना —

हर बार कुछ न कुछ मरता है

और हम कहते हैं — "चलता है!"

कितनी बार कहूं खुद से —

"धैर्य रखो, चुप रहो,"

पर अब ये चुप्पी भी गुनहगार लगती है।

जैसे हर खामोश पल में

मैं भी थोड़ा-थोड़ा मरता हूं।

कभी किसी के लिए आवाज़ उठाना

क्रांति नहीं, संवेदना है।

और संवेदनहीन समाज

बस ईंट-पत्थर का ढेर है,

जिसमें इंसान नहीं,

केवल "भीड़" रहती है।

तो अब पूछता हूँ —

कैसे धैर्य रखूं मैं?

कब तक चुप रहूं मैं?





Tags : But the soul is full of gunpowder of questions. There is a mask of peace on the face The silence is like a blazing spark Something burns inside