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मैं खुश हूं

Siddharth Bagde
tpsg2011@gmail.com
Friday, June 20, 2025, 04:37 PM
i am happy

जब लड़ने की क्षमता थी, लड़ न सका,

कंधे उठे थे भारी—पर जमीर झुका रहा,

भीड़ में खड़ा था—मगर मौन का हिस्सा बना रहा।

मैं खुश हूं,

जब आवाज़ देनी थी, शब्द गले में अटक गए,

हक़ की बात करने की हिम्मत थी—पर होंठ सिल गए,

न्याय के लिए खड़ा होना था, मगर आराम कुर्सी में गुम हो गया।

मैं खुश हूं,

जब अपनों को बचा सकता था, पर आंखें मूँद लीं,

अंधेरों में टटोलती उम्मीदें मुझसे रोशनी मांगती रहीं,

मैं चुप रहा, शायद इसलिए… कि डर मुझसे बड़ा था।

बस अफसोस है—

कि मैं कुछ भी न कर सका,

हर क्षण जलते देखा, पर बुझा न सका,

हर आह सुनी, पर हथेली बढ़ा न सका।

समय गुजर गया,

अब न हाथ में शक्ति है, न पास में कोई,

अब जो कुछ भी है—

वो बस स्मृतियाँ हैं, और खालीपन की खोई हुई आवाज़ें।

और आज...

जब खोने को कुछ नहीं बचा,

तब जाकर समझा—

कि खामोशी भी एक अपराध होती है।

पर एक सवाल अब भी भीतर गूंजता है—

क्या मैं सच में खुश हूं, या बस खुद से झूठ बोल रहा हूं?

क्या यह हँसी पश्चाताप की राख में बुझी कोई चिंगारी है?

या फिर ये "खुश हूं" कहना

एक बहाना है…

अपने ही अपराध की सज़ा से बच निकलने का?





Tags : I was standing in the crowd - but remained a part of the silence. My shoulders were heavy - but my conscience remained bowed I could not fight ​​​​​​​When I had the ability to fight