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बौद्ध संस्कृति और विदेश

Rajendra Prasad Singh

Tuesday, January 11, 2022, 09:11 AM
Buddism

बौद्ध संस्कृति और विदेश

चीन, भारत और ईरान के बीच स्थित भू-भाग को चीनी तुर्किस्तान कहा जाता है। इसी के अंतर्गत प्राचीन खोतान राज्य था।

खोतान में मुख्य रूप से उइगुर लोग बसते हैं। खोतान के मार्ग से ही बौद्ध धम्म चीन पहुँचा।

एक समय में खोतान बौद्ध धर्म की शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था।

बौद्ध परंपरा के अनुसार अशोक के पुत्र कुणाल ने यहाँ जाकर बौद्ध राज्य की स्थापना की थी।

कुणाल के पुत्र येउल तथा पौत्र विजितसंभव हुए। विजित संभव के शासन काल के पाँचवें वर्ष में बौद्ध आचार्य वैरोचन ने खोतान में बौद्ध धम्म का प्रचार किए।

आचार्य वैरोचन का यह भित्तिचित्र खोतान से मिला है। इतिहासकारों ने इसका समय 7-8 वीं सदी बताया है। ( चित्र- 2)

चीनी यात्री फाहियान ने खोतान में प्रचलित बौद्ध धम्म का विस्तृत विवरण दिया है।

उन्होंने लिखा है कि प्रत्येक घर के द्वार पर धम्म स्तूप स्थापित किए हुए हैं। छोटे से छोटा धम्म स्तूप भी बीस हाथ से अधिक ऊँचा होगा।

फाहियान को खोतान के गोमती संघाराम में ठहराया गया था। फाहियान रथयात्रा देखने के लिए यहाँ तीन महीने तक ठहरे थे।

फाहियान ने खोतान में राजा के नव विहार का भी उल्लेख किया है। बताया है कि यह 80 वर्षों में बना है और पूरे तीन राजाओं के शासन काल तक बना है।

राजा के नव विहार पर सुंदर खुदाई का काम और पच्चीकारी है। ऊपर सोने - चाँदी के पत्र चढ़े हैं और भाँति-भाँति के रत्न जड़े हैं।

फाहियान के विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि खोतान में राजा और प्रजा दोनों ही बौद्ध थे। यहाँ के बौद्ध विहार शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे।

धर्मक्षेम नामक बौद्ध विद्वान चीन से महापरिनिर्वाण सूत्र की पांडुलिपि की खोज में 433 ई. में खोतान आए थे। इससे यहाँ की समृद्ध विरासत का पता चलता है।

कूची भी खोतान के समान बौद्ध सभ्यता का प्रमुख केंद्र था। वहाँ भी बौद्ध धर्म का प्रचार प्राचीन समय में ही हो चुका था। प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक कुमारजीव का जन्म कूची में हुआ था।

कुमारजीव ईसा के चौथी सदी में हुए थे। उन्होंने चीन में रह कर अनेक भारतीय बौद्ध ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किए।

2.

तिब्बत हिमालय के उत्तर में बहुत ऊँचे पठार पर बसा है। तिब्बत के लोग बौद्ध हैं। सातवीं सदी में सम्राट सोंग्त्सेन गम्पो ने तिब्बत के पश्चिम में स्थित झगझुंग राज्य जीत लिया।

उनकी अनेक पत्नियों में से एक नेपाल से, दूसरी चीन से और तीसरी झगझुंग से थीं। कहा जाता है कि ये राजकुमारियाँ अपने साथ बुद्ध की प्रतिमाएँ लेकर गई थीं। इससे सम्राट के मन में धम्म के प्रति आस्था उत्पन्न हुई।

सोंग्त्सेन गम्पो एक लिखित भाषा विकसित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने मंत्री थोन्मि संभोट को भारत भेजा।

खोतान उस समय शक्तिशाली बौद्ध साम्राज्य था।

संभोट ने तिब्बती भाषा के लिए वर्णमाला तथा व्याकरण का आविष्कार किया। उन्हें तिब्बती साहित्य का जनक कहा जाता है।

सोंग्त्सेन गम्पो का उद्देश्य भारतीय बौद्ध ग्रंथों का तिब्बती में अनुवाद कराना था। यह अनुवाद वे इसलिए कराना चाहते थे कि इससे तिब्बत में बौद्ध धम्म की लोकप्रियता बढ़ेगी।

इसके पूर्व तिब्बत के लोग बोन धर्म को मानते थे। बौद्ध धम्म को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से वहाँ के राजा ने नालंदा और औदंतपुरी विश्वविद्यालयों से क्रमश: शांतिरक्षित एवं पद्मसंभव को तिब्बत आमंत्रित किया ।

ये विद्वान तिब्बत जाकर धम्म का मार्ग प्रशस्त किए। 11 वीं सदी में अतीश दीपंकर तिब्बत गए। उन्होंने अनेक वर्षों तक वहाँ निवास कर बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार किए।

तिब्बत में कई बौद्ध स्तूप ( चित्र- 1) और मठ स्थापित हुए। वहाँ के मठों और विहारों का निर्माण भारतीय विहारों की शैली में किया गया। समय विहार की वास्तुकला इसका उदाहरण है।





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