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हज़ारों हाथों वाला हरि बुद्ध

Rajendra Prasad Singh

Friday, June 20, 2025, 04:14 PM
Hari Buddha

‘हज़ारों हाथों वाला हरि बुद्ध’ – इतिहास, प्रतीक और भ्रांतियाँ

इस अत्यंत जटिल और कलात्मक मूर्ति में एक दिव्य पुरुष खड़ा है, जिसके पीछे असंख्य भुजाएँ, सिरों की पंक्ति और दैवीय आभामंडल है। यह आकृति देखने में एक ओर भगवान विष्णु के विश्वरूप जैसी है, दूसरी ओर इसमें बोधिसत्त्व अवलोकितेश्वर या सहस्रबाहु बुद्ध के भी प्रतीक हैं।

 बोधिसत्त्व अवलोकितेश्वर: करुणा का सहस्रहस्त रूप

बौद्ध परंपरा में अवलोकितेश्वर (Avalokiteshvara) करुणा के बोधिसत्त्व हैं, जो संसार के समस्त जीवों की पीड़ा सुनते और उनका उद्धार करते हैं। उनके हज़ार हाथ और हज़ार आँखें इसी संकल्प और शक्ति के प्रतीक हैं — ताकि वे हर दिशा में देख सकें और मदद पहुँचा सकें।

  • संस्कृत ग्रंथों में उन्हें "सहस्रभुज सहस्रनेत्र अवलोकितेश्वर" कहा गया है।

  • चीन में इन्हें "गुआन यिन" के रूप में जाना जाता है, जापान में "कान्नोन"।

  • भारत में इनकी मूर्तियाँ विशेष रूप से नालंदा, अजंता, एलोरा जैसे बौद्ध स्थलों पर मिलती हैं।

कई इतिहासकारों और कला विश्लेषकों का मानना है कि:

  • बुद्ध धर्म की लोकप्रचलित मूर्तियाँ और दर्शन बाद में हिंदू पौराणिक गाथाओं में समाहित कर लिए गए।

  • विशेषतः गुप्त काल में कई बौद्ध बोधिसत्त्वों को विष्णु के अवतार बताकर ब्राह्मणवादी ढाँचे में ढाला गया।  इतिहास बनाम पौराणिकता: बुद्ध की भौतिक उपस्थिति और विष्णु की कल्पना

  • तथागत बुद्ध का जीवन – उनका जन्म, तपस्या, ज्ञान प्राप्ति, प्रवचन और महापरिनिर्वाण – ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित हैं। उनके अवशेष, भिक्षुपात्र, स्तूप, अशोक स्तंभ और साक्ष्य दुनियाभर में हैं।

  • विष्णु – वेदों और पुराणों में वर्णित एक आदर्श, दिव्य सत्ता हैं, किंतु उनके कोई ऐतिहासिक या भौतिक साक्ष्य नहीं मिलते। न उनके जीवन का विवरण, न मृत्यु, न अवशेष।

धर्म का विलयन या अपहरण?

बौद्ध धर्म की अहिंसक, तर्कसंगत और सार्वभौमिक शिक्षा ने संपूर्ण एशिया को आकर्षित किया। किंतु भारत में, धीरे-धीरे:

  • बुद्ध को दशावतारों में शामिल किया गया (9वां अवतार),

  • उनके विचारों को वेदसम्मत बताने का प्रयास हुआ,

  • और बौद्ध बोधिसत्त्वों की मूर्ति-शैली को विष्णु-पूजन के लिए अपनाया गया।

यह प्रक्रिया धार्मिक विलयन (syncretism) कही जा सकती है, परंतु आपकी भाषा में यह “धार्मिक अपहरण” भी हो सकता है – जहाँ एक ऐतिहासिक युगपुरुष को पौराणिकता के आवरण में छुपा दिया गया।





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