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बौद्ध ग्रंथों की पांडुलिपि

Rajendra Prasad Singh

Sunday, April 28, 2019, 08:49 AM
Manuscript of Buddhist texts

इत्सिंग ने अपने यात्रा - विवरण के आरंभ में लिखा है कि चीन से भारत और उसके पड़ोसी देशों में अब तक 56 बौद्ध यात्री आ चुके हैं। इत्सिंग कोई 400 और ह्वेनसांग 657 बौद्ध ग्रंथों की पांडुलिपि भारत से चीन ले गए थे। विचार कीजिए कि जब दो बौद्ध यात्री कोई 1000 बौद्ध पांडुलिपि चीन ले गए थे, तब 56 बौद्ध यात्री कितनी बौद्ध पांडुलिपि चीन ले गए होंगे?

विक्रमशिला, उद्दण्डपुर, तेलहाड़ा को छोड़िए, सिर्फ नालंदा विश्वविद्यालय में 3 बड़े - बड़े पुस्तकालय थे। सबसे बड़ा पुस्तकालय 9 मंजिला था। अंदाज कीजिए कि बौद्ध विश्वविद्यालयों के पास कितनी किताबें रही होंगी?

गुणभद्र, धर्मरुचि, रत्नमति, बोधिरुचि जैसे अनेक बौद्ध विद्वान चीन गए और बौद्ध ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किए। अकेले गुणभद्र ने 78 बौद्ध ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किए। सोचिए कि चीन गए दर्जनों बौद्ध विद्वानों ने कितने बौद्ध - ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किए होंगे?

11 वीं सदी तक बौद्ध विद्वानों का तिब्बत जाने का ताँता लगा रहा। शांतिरक्षित, आर्यदेव, कमलशील, अतिश जैसे दर्जनों बौद्ध विद्वान तिब्बत गए, बौद्ध - ग्रंथों का अनुवाद किए, लिखे भी।अकेले अतिश ने 200 बौद्ध - ग्रंथ लिखे थे। सोचिए कि तिब्बत गए दर्जनों बौद्ध विद्वानों ने कितने बौद्ध - ग्रंथ लिखे होंगे?

फाहियान भारत से पोत में लाद - लादकर क्या ले गए? राहुल सांकृत्यायन तिब्बत से खच्चरों पर लाद - लादकर क्या लाए? वही बौद्ध साहित्य, ईंट नहीं। ईंट की बात निकली है तो जानिए कि नालंदा की खुदाई में ईंटों पर भी लिखा हुआ बौद्ध साहित्य मिला है। ईंट की बात छोड़िए, राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत से सोने और चाँदी की स्याही से लिखा हुआ बौद्ध साहित्य ले आए हैं। यकीन न हो तो तसवीर में देख लीजिए।

बहुत समृद्ध था बौद्ध साहित्य - अकूत!!!

राजेन्द्र प्रसाद सिंह





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